पलामू, 26 अक्टूबर (हि.स.)।झारखंड विधानसभा चुनाव में भाजपा के दो नेताओं की बयानबाज़ी ने स्थानीय जनता के बीच भ्रम और असमंजस की स्थिति पैदा कर दी है। हुसैनाबाद में भाजपा के असम के मुख्यमंत्री हिमंत विस्वा सरमा ने क्षेत्र का नाम बदलने और जिले के रूप में स्थापित करने की घोषणा की, जबकि कुछ ही समय बाद यूपी के परिवहन मंत्री दयाशंकर सिंह ने छत्तरपुर में यही वादा दोहराया। दोनों ही घोषणाएं पार्टी के एजेंडे में समुदायों के बीच ध्रूवीकरण और वोट हासिल करने के उद्देश्य को लेकर लोगों में सवाल खड़े कर रही हैं।
हुसैनाबाद में आयोजित सभा में भाजपा के वरिष्ठ नेता हिमंत विस्वा सरमा ने घोषणा की कि अगर भाजपा सत्ता में आती है तो हुसैनाबाद का नाम ‘रामकृष्ण’ या देश के वीरों के नाम पर रखा जाएगा। उन्होंने यह तल्ख टिप्पणी की कि ये हुसैन कौन है? उन्होंने कहा कि हुसैनाबाद का नाम बदलकर ही जिला बनायेंगे। यह बयान धार्मिक भावना भड़काने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है।
असम के सीएम के बयान के ठीक बाद, यूपी के परिवहन मंत्री दयाशंकर सिंह ने छत्तरपुर में अपनी सभा में छत्तरपुर को जिला बनाने की घोषणा कर दी, जबकि हुसैनाबाद की सभा में इसे नाम बदलकर जिला बनाने की घोषणा पर दयाशंकर सिंह तालियां पीट रहे थे। दोनों नेताओं की विरोधाभासी घोषणाओं ने जनता के मन में भाजपा के चुनावी एजेंडे को लेकर संदेह पैदा कर दिया है।
चुनाव आयोग की आचार संहिता के अनुसार, चुनाव के दौरान ऐसी घोषणाएं नहीं की जा सकतीं जिनसे किसी वर्ग को लाभ मिले या धार्मिक तनाव उत्पन्न हो। सरमा द्वारा हुसैनाबाद के नाम को लेकर की गई तल्ख टिप्पणी को भी संभावित आचार संहिता उल्लंघन माना जा रहा है। जनता का विश्वास भाजपा के वादों पर पहले से ही डगमगाया हुआ है। पूर्व में पीएम नरेंद्र मोदी और राजनाथ सिंह द्वारा जपला सीमेंट फैक्ट्री को पुनर्जीवित करने की घोषणा की गई थी, लेकिन बाद में इसे कबाड़ में नीलाम कर दिया गया। इससे लोगों में भाजपा के वादों की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े हो गए हैं।
इस पूरे घटनाक्रम में भाजपा के नेताओं की ओर से किए गए वादे न केवल विरोधाभासी हैं, बल्कि जनता को भ्रमित करने का संकेत देते हैं। चुनावी मौसम में क्षेत्रीय नाम बदलने और जिले बनाने जैसी घोषणाएं अक्सर जनता को लुभाने के लिए की जाती हैं। भाजपा के इन बड़े नेताओं के बीच आपसी तालमेल की कमी और उनके द्वारा की गई विभिन्न घोषणाएं भाजपा के एजेंडे की स्थिरता और चुनावी राजनीति की सच्चाई को लेकर सवाल खड़े कर रही हैं।