दिल्ली में सरकारी बंगलों पर कब्जे को लेकर विवाद एक बार फिर सुर्खियों में है। देश के दो प्रमुख राजनीतिक दल, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और कांग्रेस, लंबे समय से लुटियंस दिल्ली के बंगलों का उपयोग अपने पार्टी कार्यालयों के रूप में कर रहे हैं। हालांकि, सरकारी नियमों के अनुसार, पार्टी दफ्तर के लिए जमीन आवंटित होने या निर्माण पूरा होने के तीन साल के भीतर इन बंगलों को खाली कर देना चाहिए। लेकिन दोनों पार्टियां अभी तक इन बंगलों पर कब्जा जमाए हुए हैं।
भाजपा और कांग्रेस ने अभी तक नहीं किए बंगले खाली
सूत्रों के अनुसार, आवास और शहरी मामले के मंत्रालय ने 2018 में कांग्रेस को इन बंगलों को खाली करने का नोटिस जारी किया था। इसके बाद कांग्रेस ने दो सरकारी बंगलों को खाली किया, लेकिन अभी भी वह अकबर रोड और रायसीना रोड के दो सरकारी बंगलों का उपयोग कर रही है।
भाजपा भी इस नियम का पालन नहीं कर रही है। पार्टी अभी भी अशोका रोड और पंडित दीनदयाल उपाध्याय मार्ग पर स्थित दो सरकारी बंगलों का इस्तेमाल कर रही है। टीओआई की रिपोर्ट के मुताबिक, फिलहाल कुल 6 सरकारी बंगलों पर विभिन्न राजनीतिक दलों का कब्जा है।
सरकारी नियमों का हो रहा उल्लंघन
सरकारी नियमों के अनुसार:
- राजनीतिक दलों को पार्टी कार्यालय के लिए जमीन आवंटित होने या निर्माण पूरा होने के तीन साल के भीतर सरकारी बंगले खाली करने चाहिए।
- इन नियमों का उद्देश्य सरकारी संपत्ति का उचित और समय पर उपयोग सुनिश्चित करना है।
हालांकि, भाजपा और कांग्रेस दोनों ही अभी तक इन बंगलों को खाली करने के मूड में नहीं दिख रही हैं।
दिल्ली चुनाव में गरमाया बंगले का मुद्दा
सरकारी बंगलों को लेकर विवाद ने दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान राजनीतिक गर्मी बढ़ा दी।
- भाजपा के दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा ने दिल्ली की मुख्यमंत्री आतिशी पर तीखा हमला किया।
- सचदेवा ने आरोप लगाया कि आतिशी के पास दो सरकारी बंगले हैं।
- उन्होंने 17 एबी मथुरा रोड स्थित बंगले पर पहुंचकर आतिशी को ‘बंगले वाली देवी’ कहते हुए सवाल उठाया कि वह कितने बंगलों की हकदार हैं।
भाजपा का आरोप
- वीरेंद्र सचदेवा ने कहा कि आतिशी को यह बंगला आवंटित है, लेकिन उन्होंने इसका उपयोग अपने राजनीतिक सहयोगियों को रखने के लिए किया।
- उन्होंने पूछा कि अगर 2015 से 2024 तक अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री थे, तो 6 फ्लैग स्टाफ रोड को मुख्यमंत्री आवास क्यों नहीं घोषित किया गया?
कांग्रेस और भाजपा पर नियमों के पालन का दबाव
सरकारी बंगलों के उपयोग को लेकर विवाद केवल दिल्ली तक सीमित नहीं है। यह मुद्दा सरकारी संपत्तियों के दुरुपयोग और नियमों के उल्लंघन को उजागर करता है।
- विपक्षी दलों और आम जनता का मानना है कि सरकारी नियमों का सख्ती से पालन होना चाहिए।
- राजनीतिक दलों को अपने पार्टी कार्यालयों के लिए जमीन आवंटित होने के बाद सरकारी बंगलों से हटना चाहिए।