रतलाम: रचना पाठ एवं विमर्श में हुई महादेवी वर्मा के कृतित्व पर चर्चा

रतलाम, 11 मार्च (हि.स.)। डॉ. शिवमंगल सिंह सुमन स्मृति शोध संस्थान में रचना पाठ एवं विमर्श कार्यक्रम में महादेवी वर्मा के व्यक्तित्व -कृतित्व एवं उनकी विरह वेदना पर प्रकाश डाला गया। उनकी प्रतिनिधि रचनाओं के पाठ एवं विमर्श पर संगोष्ठी आयोजित की गई।

कार्यक्रम में हार्दिक अग्रवाल ने विरह का जलजात जीवन का पाठ कर महादेवी वर्मा के काव्य में विरह वेदना को स्पष्ट करते हुए कहा कि महादेवी वर्मा और वेदना एक दूसरे के पूरक हैं। आकाश अग्रवाल ने चिर सजग आंखें उनींदी, जाग तुझको दूर जाना रचना का पाठ कर महादेवी के काव्य में जीवन के गहरे प्रेरणादायी संदेशों पर अपनी बात कही ।

प्रिया उपाध्याय ने मैं नीर भरी दुख की बदली एवं तुम सो जाओ मैं गाऊँ, गीत की सस्वर प्रस्तुति कर महादेवी वर्मा के आध्यात्मिक जीवन पर प्रकाश डाला ।

दीपा नागर ने ‘‘वे मुझको भाते फूल नहीँ जिनको आता मुरझाना, रचना का पाठ कर जीवन और फूल के संघर्ष को परिभाषित किया । अनुराधा खरे ने मधुर मधुर मेरे दीपक जल रचना का पाठ कर कहा कि महादेवी वर्मा अपने आत्मा की चेतना के दीपक को निरन्तर जलते रहने की बात कहते हुए सम्पूर्ण मन: चेतना को ईश्वर में समर्पित करना चाहती हैं।

रश्मि उपाध्याय ने शून्य मंदिर में बनूंगी आज मैं प्रतिमा तुम्हारी एवं प्रिय मेरे गीले नयन बनेंगे आरती, रचनाओं का पाठ कर महादेवी वर्मा के रहस्यवाद पर टिप्पणी की।

अखिल स्नेही ने महादेवी वर्मा की सब आँखों के आंसू उजले सबके सपनों में सत्य पला, रचना का सस्वर पाठ कर विमर्श में अपने विचार प्रकट करते हुए कहा कि ईश्वर से एकाकार की गहरी भावानुभूति यहाँ दिखाई दे रही है कि जिसने अपना सर्वस्व समर्पण किया ईश्वर ने उसके जीवन में मधुरता भरी। जिसने उसको ज्वाला सौंपी ,उसने इसमें मकरन्द भरा, से हमें ज्ञात होता है कि ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण का संदेश यहाँ महादेवीजी दे रही हैं।

लक्ष्मण पाठक ने पंथ रहने दो अपरिचित प्राण रहने दो अकेला, गीत का सस्वर पाठ कर महादेवी वर्मा के गीतों में विरह वेदना, अंतर्मन के दुख एवं विषाद को व्यक्त कर कहा कि महादेवी वर्मा का काव्य करुणा से ओतप्रोत काव्य है।

डॉ. शोभना तिवारी ने प्रिय चिरन्तन है सजनी, एवं बोलिहैं नाहीं, ब्रज भाषा में रचित रचना का पाठ कर विमर्श में महादेवी वर्मा के गहरे रहस्यवाद पर अपनी बात कहते हुए कहा कि आधुनिक काल की मीरा महादेवीजी ने पीड़ा को ही गाया है । पीड़ा ही जिनको श्रेय है, पीड़ा ही पेय है । पर शेष नहीं होगी , यह मेरे प्राणों की क्रीड़ा, तुमको ढूंढा पीड़ा में , तुममे ढंढूंगी पीड़ा।

मुख्य अतिथि डॉ. उषा व्यास ने कहा कि छाया वाद के स्तम्भों में महादेवी वर्मा का सर्वश्रष्ठ स्थान है। निराला कहते है कि हिंदी के विशाल मंदिर की सरस्वती है महादेवी वर्मा। पीड़ा एवं दुख का पर्याय हैं महादेवी वर्मा।

अध्यक्षता कर रही डॉ. मंगलेश्वरी जोशी ने कहा कि महादेवी वर्मा का जीवन एवम व्यक्तित्व आँसू, दुख, विषाद को गाते गाते इन सब से परे था । वे क्षणिक दुख से उबरने का संदेश देते हुए उनकी प्रतिनिधि रचना में कहती है कि मैं नीर भरी दुख की बदली। दुख को बदली के समान कहने वाली महादेवी जी ने जीवन की सहजता एवं सरलता पर भी संकेत किया है । संचालन डॉ शोभना तिवारी ने किया । आभार लक्ष्मण पाठक ने माना।