नई दिल्ली: भारतीय नियामक केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) ने दवा निर्माता कंपनी सिप्ला को देश में अफ्रेज़ा नामक इनहेल इंसुलिन वितरित करने और बेचने की अनुमति दे दी है। अफ्रेज़ा को मैनकाइंड कॉर्पोरेशन द्वारा विकसित किया गया है और इसका उपयोग ग्लाइसेमिक नियंत्रण में सुधार के लिए किया जाता है, खासकर मधुमेह के वयस्क रोगियों के लिए।
यह नई दवा मधुमेह रोगियों के लिए इंसुलिन इंजेक्शन लेने की आवश्यकता को कम करेगी, और यह उन लोगों के लिए एक बेहतर विकल्प हो सकता है जिन्हें सुइयों से डर या समस्या है। सिप्ला का लक्ष्य इस इनहेलर इंसुलिन को अधिक सुलभ बनाना है ताकि लाखों लोग अपने स्वास्थ्य पर बेहतर नियंत्रण रख सकें।
अफ्रेज़ा क्या है और यह कैसे काम करता है?
अफ्रेज़ा एक तेज़ असर करने वाला इंसुलिन है जिसे इनहेलर से लिया जाता है। वर्तमान में, इंसुलिन को इंजेक्शन के रूप में दिया जाता है, लेकिन अफ्रेज़ा को भोजन से पहले लिया जाता है और यह सीधे फेफड़ों में प्रवेश करता है, जहाँ यह तेज़ी से घुलकर रक्त में इंसुलिन पहुँचाता है। सिप्ला का कहना है कि अफ्रेज़ा लेने के सिर्फ़ 12 मिनट में ही इसका असर दिखना शुरू हो जाता है और यह रक्त शर्करा के स्तर में तेज़ी से होने वाली वृद्धि को नियंत्रित करता है। इसका असर लगभग दो से तीन घंटे तक रहता है और यह इंसुलिन के असर जैसा ही होता है।
कंपनी का उद्देश्य
सिप्ला के प्रबंध निदेशक और वैश्विक सीईओ उमंग वोहरा ने कहा, “हम मधुमेह से पीड़ित लोगों के लिए एक सुविधाजनक समाधान पेश कर रहे हैं जो विशेष रूप से उन लोगों के लिए फायदेमंद होगा जो सुइयों से डरते हैं या उनका सही तरीके से उपयोग नहीं कर सकते हैं।” उन्होंने कहा कि इससे मधुमेह को नियंत्रित करने में मदद मिलेगी।
अफ्रेज़ा का प्रयोग अमेरिका में 10 वर्षों से किया जा रहा है।
अफ्रेजा अमेरिका में 10 साल से भी ज़्यादा समय से उपलब्ध है और वहाँ हज़ारों मरीज़ों को इसका फ़ायदा मिल रहा है। अब मैनकाइंड कॉर्पोरेशन सिप्ला को अफ्रेजा की आपूर्ति करेगा और सिप्ला इसे भारतीय बाज़ार में बेचेगी। अफ्रेजा के भारत आने से मधुमेह के उपचार के तरीकों को नई दिशा मिल सकती है और यह भारत में लाखों मधुमेह रोगियों के लिए एक नया विकल्प बन सकता है।