बांग्लादेश के चटगांव कोर्ट ने इस्कॉन (अंतर्राष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ) के पूर्व पुजारी चिन्मय कृष्ण दास ब्रह्मचारी की जमानत याचिका को फिर से खारिज कर दिया है। यह मामला देश और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बन गया है। भारत की पूर्व राजदूत वीना सीकरी और कई विदेशी मामलों के विशेषज्ञों ने इस फैसले की आलोचना करते हुए इसे न्याय का उपहास करार दिया।
वीना सीकरी की प्रतिक्रिया: न्याय प्रणाली पर गंभीर सवाल
पूर्व राजदूत वीना सीकरी ने चिन्मय कृष्ण दास के खिलाफ देशद्रोह के आरोपों को सबूतों की कमी के बावजूद खारिज नहीं करने पर गहरी निराशा जताई। उन्होंने न्यूज एजेंसी एएनआई से बातचीत में कहा:
“यह न्याय का मजाक है। चिन्मय कृष्ण दास को जमानत न देना बेहद दुखद और असामान्य है। उनकी गिरफ्तारी के पीछे कोई ठोस सबूत नहीं है।”
सीकरी ने कहा कि आरोप 25 अक्टूबर की एक रैली से जुड़े हैं, लेकिन इसे प्रमाणित करने के लिए कोई दस्तावेज या तथ्य पेश नहीं किए गए। उन्होंने आगे बताया कि चिन्मय को ढाका एयरपोर्ट पर गिरफ्तार किया गया और चटगांव ले जाया गया, जहां पहली बार जमानत याचिका खारिज कर दी गई।
वकीलों के बीच झड़प और एक की मौत
चिन्मय की पिछली सुनवाई के दौरान अदालत में वकीलों और समर्थकों के बीच झड़प हुई, जिससे एक वकील की मौत हो गई। वीना सीकरी ने बांग्लादेश सरकार और प्रधानमंत्री मोहम्मद यूनुस की इस मामले पर चुप्पी पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा:
“यूनुस ने सिर्फ मारे गए वकील पर चिंता जताई, लेकिन चिन्मय के मामले पर कुछ नहीं कहा। यह अल्पसंख्यकों के साथ न्याय और मानवता के सिद्धांतों के खिलाफ है।”
अल्पसंख्यकों के साथ न्याय पर सवाल
सीकरी ने बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों के मामलों में न्याय प्रणाली की निष्पक्षता पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि मौजूदा घटनाएं यह दिखाती हैं कि बांग्लादेश की न्यायिक प्रक्रिया पक्षपाती और अल्पसंख्यक विरोधी हो सकती है।
विदेश मामलों के विशेषज्ञ रोबिंदर सचदेवा की आलोचना
विदेश मामलों के विशेषज्ञ रोबिंदर सचदेवा ने भी इस फैसले की कड़ी आलोचना की। उन्होंने कहा कि चिन्मय कृष्ण दास पर लगे आरोप गंभीर नहीं हैं और उन्हें जमानत मिलनी चाहिए थी। सचदेवा ने तर्क दिया:
“ऐसा लगता है कि बांग्लादेशी न्यायपालिका पर सरकारी प्रभाव है और यह हिंदू अल्पसंख्यकों के प्रति पक्षपाती धारणाओं से प्रभावित है।”
सचदेवा ने यह भी कहा कि न्यायपालिका का यह रुख बांग्लादेश में इस्लाम को प्राथमिक धर्म और संस्कृति के रूप में स्थापित करने के प्रयास को दर्शाता है।
मामले पर अंतरराष्ट्रीय चिंता
चिन्मय कृष्ण दास की जमानत याचिका खारिज होने से यह मामला अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में है। भारत समेत कई देशों के मानवाधिकार संगठन और धार्मिक समुदाय इसे अल्पसंख्यकों के खिलाफ संगठित अन्याय के रूप में देख रहे हैं।