हस्तचालित मेज शेलर का किसानों के बीच किया गया प्रदर्शन

पूर्वी चंपारण,17 मई(हि.स.)। जिले में लगातार बढ रहे मक्का की खेती के मद्देनजर परसौनी कृषि विज्ञान केंद्र ने किसानों की सहुलियित को लेकर हस्तचालित मेज शेलर का प्रदर्शन किया है।इसकी जानकारी देते हुए परसौनी के कृषि अभियांत्रिकी विशेषज्ञ डॉ. अंशू गंगवार ने बताया कि मक्का फसल कटाई के बाद खराब होने वाली स्थिति को कम करने के लिए मक्के की त्वरित छिलाई की सुविधा के लिए, यांत्रिक छिलाई आवश्यक है।

उन्होंने बताया कि उत्पादन के पश्चात प्राप्त भुट्टे से मक्का निकले के प्रक्रिया को शेलिंग कहते हैं। सामान्यतया सीमांत किसानों द्वारा भुट्टे की छिलाई का अधिकांश कार्य हाथ से किया जाता है जिसमें किसानों द्वारा कई तरह की प्रक्रियाएं जैसे छिलके उतारे गए भुट्टों को डंडों से पीटना, अलग-अलग भुट्टे को छीलने के लिए उंगलियों या दरांती का उपयोग करना आदि अपनाई जाती हैं। इस पारंपरिक छिलाई में समय लगता है और मजदूरों और उनकी मजदूरी की समस्या होती है।जिस कारण मक्का की खेती पर लागत बढ जाती है। इसको लेकर प्रभावी, पर्यावरण-अनुकूल समाधान की आवश्यकता है। इसके समाधान के लिए कम लागत एवं पोर्टेबल अष्टकोणीय हस्तचालित मक्का शेलर (आक्टागोनल हैण्ड मेज शेलर) को किसानों के बीच अग्रिम पंक्ति प्रत्यक्षण के माध्यम से हरसिद्धि प्रखंड के ग्राम सरेया खुर्द में 18 किसानों के बीच प्रदर्शन किया गया।

इसका उपयोग मक्के के दानों को भूसी रहित भुट्टों से अलग करने के लिए किया जाता है। डॉ. गंगवार ने बताया कि इसमें चार हल्के स्टील के पंख होते हैं, जो अपनी लंबाई के साथ पतले थे और पंख का एक किनारा पतला होता है। मक्का शेलर को अष्टकोणीय आकार में बनाने के लिए, प्रत्येक पंख दो स्थानों पर मुड़ा हुआ रहता है। मुड़े हुए पंख शेलिंग के दौरान चोट लगने से भी बचाव करते हैं। यह मक्का शेलर आम तौर पर शीट धातु से बना होता है। संचालन के समय छिलके रहित मक्के का भुट्टा दाहिने हाथ में और अष्टकोणीय हस्तचालित मक्का शेलर बाएं हाथ में रखा जाता है।

भुट्टे को अष्टकोणीय हस्तचालित मक्का शेलर में छिलके रहित मक्के के भुट्टे को डालकर दक्षिणावर्त और वामावर्त गति दी गई है, जिससे भुट्टे से दाने अलग हो जाते हैं। भुट्टे के एक तरफ से दानों को निकालने के बाद, भुट्टे से दानों को पूरी तरह से निकालने के लिए दूसरी तरफ से शेलर में डाला जाता है। इस मेज शेलर को चलाने के लिए बिजली की आवश्यकता नहीं पड़ती है। इससे छीलते समय मक्का के दानों को नुकसान नहीं पहुँचता है। किसान इसे आसानी से कहीं भी ले जा सकते हैं।