नई दिल्ली, 21 अगस्त (हि.स.)। प्रतिबंध लगाने के आदेश के खिलाफ पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) की याचिका पर दिल्ली हाई कोर्ट 11 सितंबर को सुनवाई करेगा। कार्यकारी चीफ जस्टिस मनमोहन की अध्यक्षता वाली बेंच ने पीएफआई के वकील को निर्देश दिया कि वो संक्षिप्त नोट दाखिल करें।
सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से पेश एएसजी चेतन शर्मा ने पीएफआई की याचिका में लिखे कुछ वाक्यों पर आपत्ति जताई थी। याचिका में लिखा गया था कि पीएफआई को प्रतिबंधित करने का नोटिफिकेशन कानून का दुरुपयोग है और मानवाधिकारों के उल्लंघन वाला है। याचिका में लिखे इन वाक्यों पर चेतन शर्मा ने आपत्ति जताई। पीएफआई की ओर से पेश वकील अदीत एस पुजारी ने कहा था कि याचिका में लिखे गए ये वाक्य उन गवाहों के बयान पर आधारित है, जो ट्रिब्यूनल के समक्ष पेश हुए थे।
पीएफआई ने प्रतिबंध के खिलाफ पहले सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। सुप्रीम कोर्ट ने 6 नवंबर, 2023 को पीएफआई की याचिका पर सुनवाई करने से इनकार करते हुए पीएफआई को हाई कोर्ट जाने को कहा था। पीएफआई ने यूएपीए ट्रिब्यूनल से उस पर लगे प्रतिबंध को बरकरार रखने को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। दरअसल, केंद्र सरकार ने पीएफआई को गैरकानूनी संगठन अधिनियम की धारा 3(1) में दिए गए अधिकार का इस्तेमाल करते हुए प्रतिबंधित करार दिया था। दिल्ली हाई कोर्ट के जज जस्टिस दिनेश शर्मा की अध्यक्षता वाली यूएपीए ट्रिब्युनल ने 21 मार्च को पीएफआई और उससे जुड़े दूसरे संगठनों पर प्रतिबंध लगाने के केंद्र सरकार के फैसले पर मुहर लगाई थी।
केंद्र सरकार ने 28 सितंबर, 2022 को पीएफआई और उसके सहयोगी संगठनों रिहैब इंडिया फाउंडेशन (आरआईएफ), कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया (सीएफआई), ऑल इंडिया इमाम्स काउंसिल (एआईसीसी), नेशनल कंफेडरेशन ऑफ ह्यूमन राईट्स आर्गनाइजेशन (एनसीएचआरओ) नेशनल वुमंस फ्रंट, जूनियर फ्रंट, एम्पावर इंडिया फाउंडेशन और रिहैब फाउंडेशन, केरल को पांच सालों के लिए प्रतिबंधित कर दिया था। केंद्र सरकार ने यूएपीए की धारा 3(1) के अधिकारों के तहत ये प्रतिबंध लगाया था।