दिल्ली विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पूरी ताकत झोंक रही है। पार्टी न केवल धुआंधार प्रचार अभियान चला रही है, बल्कि सामाजिक समीकरणों को भी साधने में जुटी है। खासकर, पूर्वांचली मतदाताओं को, जो टिकट वितरण से नाराज बताए जा रहे हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए भाजपा ने हर सीट पर उत्तर प्रदेश और बिहार के एक-एक नेता को तैनात किया है, ताकि पूर्वांचली समुदाय को साधा जा सके।
पूर्वांचल वोटर्स पर भाजपा की नजर
दिल्ली में बड़ी संख्या में दूसरे राज्यों से आए लोग रहते हैं, जिनमें सबसे बड़ा हिस्सा पूर्वांचलियों का है। भाजपा के लिए यह समुदाय चुनावी समीकरणों में अहम भूमिका निभाता है। हालांकि, इस बार भाजपा को टिकट वितरण में पूर्वांचली नेताओं को ज्यादा तवज्जो न देने को लेकर नाराजगी झेलनी पड़ी है।
इस असंतोष को दूर करने के लिए भाजपा ने बिहार की अपनी सहयोगी पार्टियों, जेडीयू और लोजपा (रामविलास), को एक-एक सीट दी है। यह कदम यह दर्शाने के लिए उठाया गया है कि भाजपा न केवल अपने गठबंधन सहयोगियों को साथ रख रही है, बल्कि पूर्वांचल क्षेत्र को भी पूरी अहमियत दे रही है।
प्रत्येक सीट पर यूपी-बिहार के नेता तैनात
भाजपा ने सभी 70 विधानसभा सीटों पर उत्तर प्रदेश और बिहार के बड़े नेताओं को जिम्मेदारी दी है। इन नेताओं में विधायक, मंत्री, पूर्व मंत्री और एमएलसी शामिल हैं। उनकी भूमिका क्षेत्रीय कार्यकर्ताओं को संगठित करना और मतदाताओं तक भाजपा का संदेश पहुंचाना है।
सक्रिय और निष्क्रिय कार्यकर्ताओं पर पैनी नजर
उत्तर प्रदेश और बिहार से आए नेता पार्टी संगठन को मजबूत करने में भी अहम भूमिका निभा रहे हैं।
- वे स्थानीय कार्यकर्ताओं की निगरानी कर रहे हैं और भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व को फीडबैक दे रहे हैं।
- वे यह भी देख रहे हैं कि कौन से कार्यकर्ता सक्रिय हैं और कौन निष्क्रिय।
- बैठकों और रैलियों के जरिए कार्यकर्ताओं को यह समझाने की कोशिश की जा रही है कि भाजपा की जीत से ही संगठन मजबूत होगा।
भाजपा की रणनीति कितनी कारगर होगी?
भाजपा का यह प्रचार अभियान और रणनीति पूर्वांचल मतदाताओं को कितना प्रभावित करेगी, यह तो नतीजे ही बताएंगे। लेकिन यह साफ है कि भाजपा चुनाव जीतने के लिए हर संभव कोशिश कर रही है और हर समुदाय को साधने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है।