पंचम तल की बांसुरी की विलंबित लय और मीडिया से बिगड़ते रिश्ते

(पवन सिंह)

उत्तर प्रदेश सूचना विभाग सरकार की योजनाओं के प्रचार-प्रसार करने वाला सबसे बड़ा विभाग है। सच कहा जाए सरकार की आंख-नाक और जान है लेकिन विगत दो सालों से शासन स्तर पर बजट को लेकर जो साड़ी से “रूमाल” बनाने की कटिंग चल रही है, वह अब पत्रकारों के बीच चर्चा का विषय है। सरकार अपनी योजनाओं के प्रचार-प्रसार के लिए तो सूचना विभाग को भरपूर बजट दे रही है लेकिन शासन स्तर पर जिस तरह “छह इंची पाइप” में उसे टोंटी लगाकर हर बार रोक-टोक की जा रही है, उससे मीडिया में गहरी नाराजगी है। इसे आप यूं समझिए कि बजट तो भागीरथी नदी की तरह आ रहा है लेकिन शासन स्तर पर बजट को टिहरी बांध बनाकर उसे रोक दिया गया है।

बजट किसी माइनर (छोटी नहर) की तरह रिलीज़ किया जा रहा है। इसका परिणाम सीधे-सीधे यह हो रहा है कि राज्य सरकार की अनेकानेक जनहित की योजनाओं का जिस तरह से प्रचार-प्रसार “प्रचार के प्रत्येक माध्यमों” के जरिए होना चाहिए था, वह नहीं हो पा रहा है। लोकसभा निर्वाचन की तिथि के घोषित होने से लगभग एक माह पूर्व ही सूचना विभाग सरकारी योजनाओं के जबरदस्त चुनाव प्रचार से केवल इसलिए चूक गया क्योंकि शासन स्तर से बजट ही रिलीज नहीं किया गया। ज्ञातव्य हो यह वह महत्वपूर्ण समय था जब सूचना विभाग को सरकारी योजनाओं के प्रचार-प्रसार के लिए अपनी पूरी ताकत झोंकने की जरूरत थी। दुर्भाग्यपूर्ण यह रहा कि सरकार द्वारा सूचना विभाग को भरपूर बजट देने के बाद भी, उसे प्रशासनिक स्तर पर खर्च नहीं किया गया।‌

मीडिया का, खासकर में स्ट्रीम मीडिया और सूचना विभाग के बीच जिस तरह का सामंजस्य बना हुआ था, वह अब दरकने लगा है। हाथरस की घटना पर में स्ट्रीम मीडिया ने सरकार को तो नहीं कोसा लेकिन जिस तरह से जबरदस्त कवरेज की गई, वह बहुत कुछ इशारा कर गई। मीडिया ने सरकार को घुमा कर बता दिया कि सूचना विभाग के बजट को अगर शासन स्तरीय स्पीड ब्रेकर की तरह चलाया गया तो वह भी खबरें यमुना एक्सप्रेस-वे की तरह चलायेगा….

आज लोकसभा चुनाव की आचार संहिता समाप्त हुए एक माह से अधिक का समय हो चुका है लेकिन शासन स्तरीय स्पीड ब्रेकर उसी तरह बना हुआ है जैसे लोकसभा चुनाव की तिथि घोषित होने के एक माह पहले तक बना था या विगत दो सालों से बना हुआ है। बजट रोकना और फिर रिलीज भी कर देना…फिर रोकना और फिर रिलीज कर देने का खेल भी बहुत से संदेहों को जन्म दे रहा है। मीडिया जगत में बार-बार इस पिचकारी के चर्चे अब आम हो चले हैं।

उत्तर प्रदेश सूचना विभाग का एक प्रेस आतिथ्य सत्कार फंड हुआ करता था। इस फंड के तहत मान्यता प्राप्त पत्रकारों अचानक किसी जरूरत पर वाहन की सुविधा मिल जाया करती थी। राज्य सरकार की किसी विशेष योजना या कार्यक्रम की कवरेज के लिए बस/कारों की सुविधा उपलब्ध कराई जाती थी। इसी फंड के जरिए विशेष अवसरों पर कालिदास मार्ग या लोकभवन में मुख्यमंत्री द्वारा आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस/आयोजन में जलपान की व्यवस्था की जाती थी लेकिन अब इस फंड को ही मृतप्राय कर दिया गया है। जानकारी के अनुसार इस मद का 10 करोड़ का फंड सेरेंडर कर दिया गया है।
फिलहाल शासन स्तर पर बैठे अधिकारियों को यह समझने की सख्त जरूरत है कि सूचना विभाग की तासीर अन्य सरकारी विभागों की तासीर और मिजाज से अलहदा है।
अब सवाल ये उठ रहे हैं कि क्या पंचम तल उत्तर प्रदेश की मीडिया से सरकार के रिश्ते खराब करना चाह रहा है। अगर ऐसा है तो इसके पीछे की मंशा क्या है?