नई दिल्ली: भारत में खेती के लिए प्रमुख उर्वरक, डीएपी (डायअमोनियम फॉस्फेट) की कीमतें अगले महीने बढ़ने की संभावना है। वर्तमान में, 50 किलो के बैग की कीमत 1350 रुपये है, जो कि 200 रुपये तक बढ़ सकती है। केंद्र सरकार किसानों को सस्ती दर पर डीएपी उपलब्ध कराने के लिए प्रति टन 3,500 रुपये की विशेष सब्सिडी प्रदान करती है, जो 31 दिसंबर को समाप्त होने वाली है। हाल ही में, डीएपी बनाने में प्रयुक्त फॉस्फोरिक एसिड और अमोनिया की कीमतों में 70 प्रतिशत तक की वृद्धि हुई है, जिसका असर उर्वरक की कीमतों पर पड़ रहा है।
फॉस्फेट और पोटाश के लिए सब्सिडी योजना
फॉस्फेट और पोटाश (पी एंड के) उर्वरकों के लिए, केंद्र सरकार ने अप्रैल 2010 से पोषक तत्व आधारित सब्सिडी (एनबीएस) योजना लागू की है। इस योजना के तहत, विनिर्माण कंपनियों को हर साल सब्सिडी दी जाती है। पीएंडके सेक्टर को नियंत्रित नहीं किया गया है, जिससे कंपनियां बाजार की जरूरतों के अनुसार उर्वरक का उत्पादन और आयात कर सकती हैं। हालांकि, यदि विशेष सब्सिडी की अवधि बढ़ाई नहीं गई, तो 1 जनवरी से डीएपी की कीमतें बढ़ना तय है। इस साल खरीफ सीजन में प्रति टन डीएपी पर सब्सिडी 21,676 रुपये थी, जिसे अगले हरि सीजन (2024-2025) के लिए बढ़ाकर 21,911 रुपये कर दिया गया है।
सब्सिडी हटने पर उद्योग पर बोझ
यदि विशेष सब्सिडी को जारी रखने पर विचार नहीं किया गया, तो उद्योग जगत को इसका बोझ उठाना पड़ेगा। हाल के समय में डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर हो गया है, और अंतरराष्ट्रीय बाजार में डीएपी की कीमत अभी भी 630 डॉलर प्रति टन है। रुपये के कमजोर होने से आयात लागत में करीब 1,200 रुपये प्रति टन की वृद्धि हो गई है। यदि सब्सिडी भी समाप्त कर दी गई, तो लागत लगभग 4,700 रुपये प्रति टन बढ़ जाएगी, जो प्रति बैग 200 रुपये महंगी हो सकती है। गौरतलब है कि दो साल पहले 50 किलो का बैग 1200 रुपये में मिलता था, लेकिन अब इसमें 150 रुपये की वृद्धि हो चुकी है।
डीएपी का आयात
भारत में इस साल डीएपी की 93 लाख टन आवश्यकता थी, जिसमें से 90 प्रतिशत आयात के माध्यम से पूरी की जानी थी। हालांकि, अंतरराष्ट्रीय बाजार में डीएपी की कीमतें बढ़ने के कारण आयात में कमी आई, जिससे देश में डीएपी संकट पैदा हुआ। लेकिन सरकार की पहल से अब आयात में तेजी आई है और इसे किसानों तक पहुंचाने में सफलता मिली है।