कच्चा तेल: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की जटिल टैरिफ नीति और इसके परिणामस्वरूप वैश्विक आर्थिक अनिश्चितता ने कच्चे तेल की कीमतों पर भारी दबाव डाला है। ब्रेंट क्रूड का कारोबार शुक्रवार को 70 डॉलर प्रति बैरल से नीचे हुआ तथा इस सप्ताह अब तक इसमें लगभग 5% की गिरावट आई है। वहीं, अमेरिकी क्रूड (WTI) भी 66 डॉलर प्रति बैरल के करीब है, जो इस सप्ताह लगभग 4.8% कमजोर हुआ है। इस गिरावट को अक्टूबर 2024 के बाद की सबसे बड़ी साप्ताहिक गिरावट और वर्ष 2025 की सबसे बड़ी गिरावट माना जा रहा है।
ट्रम्प की टैरिफ नीति का उतार-चढ़ाव –
ट्रम्प ने मैक्सिको और कनाडा से आयातित अधिकांश वस्तुओं पर 25% टैरिफ लगाने की घोषणा की थी, लेकिन अब इसे 2 अप्रैल तक के लिए स्थगित कर दिया गया है।
हालाँकि, स्टील और एल्युमीनियम पर टैरिफ 12 मार्च से प्रभावी होंगे। इससे पहले कनाडा से अमेरिका भेजे जा रहे तेल जहाजों ने अपनी दिशा बदल ली है और वे यूरोप की ओर बढ़ने लगे हैं, जिसके कारण कनाडा के भारी कच्चे तेल की कीमत में उछाल आया है।
ओपेक+ की आपूर्ति बढ़ाने की योजना से भी दबाव बना – तेल उत्पादक देशों के समूह ओपेक+ ने इस सप्ताह घोषणा की कि अप्रैल से उत्पादन बढ़ाया जाएगा। इससे बाजार में प्रतिदिन 1,38,000 बैरल की अतिरिक्त आपूर्ति होगी, जिससे कीमतों पर और दबाव पड़ सकता है। इसके अलावा, अमेरिकी कच्चे तेल के भंडार में वृद्धि की खबर से भी कीमतें कमजोर हुई हैं।
ईरान के खिलाफ सख्त कार्रवाई की तैयारी –
अमेरिकी सरकार ने संकेत दिया है कि वह ईरान के तेल निर्यात को पूरी तरह से रोकने के लिए समुद्र में ईरानी तेल टैंकरों का निरीक्षण करने जैसे कदम उठा सकती है। यह कदम ट्रम्प के “अधिकतम दबाव” अभियान का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य ईरान की तेल बिक्री को शून्य पर लाना है।
विशेषज्ञ क्या कह रहे हैं: सिंगापुर स्थित वांडा इनसाइट्स की संस्थापक वंदना हरि ने कहा, “आने वाले समय में तेल की कीमतें पूरी तरह से ट्रंप की व्यापार नीति के फैसलों पर निर्भर होंगी। जब तक तस्वीर साफ नहीं हो जाती, कीमतें और गिर सकती हैं।”
भारत का क्या होगा?
कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट भारत जैसे तेल आयातक देशों के लिए फायदेमंद साबित हो सकती है। इससे मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने में मदद मिल सकती है और सरकार को तेल पर कर कम करने का अवसर मिल सकता है। हालाँकि, वैश्विक मंदी और व्यापार युद्ध की आशंकाओं से भारतीय निर्यात और निवेश माहौल को नुकसान पहुँच सकता है। इसका सीधा असर भारतीय बाजारों में धातु, तेल और पेट्रोकेमिकल क्षेत्रों पर देखा जा सकता है।
कुल मिलाकर – टैरिफ नीति पर ट्रम्प के यू-टर्न, ओपेक+ उत्पादन में वृद्धि और ईरान पर अमेरिकी कार्रवाई की आशंकाओं के कारण कच्चे तेल की कीमतों में तेजी से उतार-चढ़ाव आया है। ये कम कीमतें भारत को राहत दे सकती हैं, लेकिन वैश्विक आर्थिक मंदी के खतरे को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।