Crime Thriller Bollywood: हिम्मत है तो देखें बॉलीवुड की ये 5 फिल्में, देखते ही आपका दिमाग घूम जाएगा
News India Live, Digital Desk: भारतीय सिनेमा हमेशा से कहानियों के विशाल कैनवास पर अपनी पकड़ रखता आया है। जहाँ एक तरफ मनोरंजक, प्रेम कहानियाँ और मसालेदार एक्शन फ़िल्में बनती हैं, वहीं दूसरी तरफ कुछ ऐसे फिल्ममेकर भी हैं जो लीक से हटकर दिमाग को झकझोर देने वाली कहानियों को पर्दे पर उतारने की हिम्मत करते हैं। ये फ़िल्में न सिर्फ आपकी सोच को चुनौती देती हैं, बल्कि अक्सर आपको अपनी सीट पर हिलने नहीं देतीं और इनके क्लाइमैक्स के बाद भी आपका दिमाग कई दिनों तक इन्हें सुलझाने की कोशिश करता रहता है। ये सिर्फ़ थ्रिलर नहीं, बल्कि गहरे मनोवैज्ञानिक सफर, सामाजिक टिप्पणियाँ और इंसान के अंधेरे कोनों की पड़ताल हैं। अगर आप हल्के-फुल्के मनोरंजन की तलाश में हैं, तो बेहतर होगा कि इन फ़िल्मों से दूर रहें। लेकिन अगर आप एक ऐसे दर्शक हैं जो कुछ नया, कुछ हटकर और दिमाग को कसौटी पर कसने वाला सिनेमा देखना चाहते हैं, तो अपनी कुर्सी की पेटी बाँध लीजिए और तैयार हो जाइए, क्योंकि बॉलीवुड की ये 5 फ़िल्में आपके होश उड़ा सकती हैं और इनके गहरे अर्थों में आपका दिमाग कई दिनों तक उलझा रह सकता है।
वो फिल्में जो देंगी आपके दिमाग को सबसे बड़ा 'झटका'! कमजोर दिल वाले तुरंत करें स्किप
आज हम ऐसी 5 फिल्मों की बात करेंगे, जो बॉलीवुड में लीक से हटकर बनाई गईं और दर्शकों के दिलों और दिमाग पर एक अमिट छाप छोड़ गईं। ये फ़िल्में सिर्फ़ एक बार देखने से समझ नहीं आतीं और आपको इनके बारे में सोचने पर मजबूर कर देती हैं।
नो स्मोकिंग (No Smoking - 2007): अनुराग कश्यप निर्देशित यह फिल्म किसी रहस्यमयी सपने जैसी है। जॉन अब्राहम एक अहंकारी और चेन-स्मोकर की भूमिका में हैं, जिसे एक रहस्यमय बाबा (परेश रावल) के 'कोशिश छोड़ो सिगरेट' केंद्र में धूम्रपान छोड़ने के लिए मजबूर किया जाता है। फिल्म अपनी अलौकिक, रूपकात्मक और अति-वास्तविक कथा शैली से दिमाग को झकझोर देती है। इसमें लॉजिक के बजाय प्रतीकवाद ज़्यादा है, जो दर्शकों को कई सवालों के साथ अकेला छोड़ देता है। फिल्म की थीम, संपादन और नॉन-लीनियर स्टोरीटेलिंग इसे एक अत्यंत दिमागी कसरत वाली फिल्म बनाती है, जिसे देखते ही आप खुद को उलझा हुआ महसूस कर सकते हैं।
अग्ली (Ugly - 2014): अनुराग कश्यप की एक और अंधेरी, किरकिरी और परेशान करने वाली पेशकश। एक लापता लड़की के इर्द-गिर्द घूमती यह फिल्म मानव स्वभाव के सबसे बदसूरत पहलुओं, जैसे लालच, असुरक्षा और छल को उजागर करती है। यह सिर्फ एक क्राइम थ्रिलर नहीं है, बल्कि रिश्तों के जटिल ताने-बाने और हर किरदार की नैतिक अस्पष्टता को गहराई से दिखाती है। फिल्म का अंत इतना चौंकाने वाला और निराशाजनक है कि यह आपको अंदर तक हिला कर रख देगा और इंसानियत पर आपके विश्वास पर सवाल उठाएगा। इसे देखने के बाद आपका मन भारी हो सकता है।
तलाश: द आंसर लाइज विदिन (Talaash: The Answer Lies Within - 2012): आमिर खान, रानी मुखर्जी और करीना कपूर अभिनीत यह एक शानदार नियो-नोयर साइकोलॉजिकल थ्रिलर है। फिल्म एक पुलिस अधिकारी के बारे में है जो एक सेलिब्रिटी की रहस्यमय मौत की गुत्थी सुलझाने की कोशिश करता है, जबकि अपने निजी दुख (अपने बेटे की मौत) से जूझ रहा होता है। कहानी आपको हर मोड़ पर चौंकाती है और इसका अंतिम मोड़ इतना अप्रत्याशित है कि वह आपके दिमाग को पूरी तरह से घुमा देगा। फिल्म मनोवैज्ञानिक गहराइयों, भावनात्मक बोझ और अंततः एक रहस्योद्घाटन के साथ आत्मा को झकझोर देती है जो लंबे समय तक आपके साथ रहता है।
कौन? (Kaun? - 1999): राम गोपाल वर्मा की यह फिल्म हिंदी सिनेमा की सबसे प्रभावशाली मनोवैज्ञानिक थ्रिलरों में से एक मानी जाती है। उर्मिला मातोंडकर, मनोज बाजपेयी और सुशांत सिंह अभिनीत यह फिल्म पूरी तरह से एक घर के भीतर केंद्रित है जहाँ एक महिला अपने घर में अकेले रहती है और तभी उसे टीवी पर एक सीरियल किलर के भागने की खबर दिखती है। इसके तुरंत बाद, दो अनजान लोग उसके दरवाजे पर दस्तक देते हैं। फिल्म claustrophobic और अत्यधिक तनावपूर्ण माहौल बनाती है। इसमें शायद ही कोई पृष्ठभूमि संगीत है, और ध्वनि का न्यूनतम उपयोग ही आतंक का एक डरावना एहसास पैदा करता है। क्लाइमैक्स पूरी तरह से चौंकाने वाला और बेहद unsettling है, जो आपको डर और विस्मय दोनों से भर देगा।
रमन राघव 2.0 (Raman Raghav 2.0 - 2016): यह फिल्म मुंबई के एक खूंखार सीरियल किलर रमन राघव पर आधारित है। नवाजुद्दीन सिद्दीकी और विक्की कौशल अभिनीत, यह फिल्म आपको मानव मन के अंधेरे कोनों में खींच लेती है। यह हिंसा और विकृति को ग्राफिक रूप से दिखाती है और नैतिकता की सीमाओं को धुंधला करती है। यह सिर्फ एक थ्रिलर नहीं, बल्कि एक साइकोलॉजिकल चरित्र अध्ययन है जो आपको असहज कर देगा। फिल्म का अन-फिल्टर्ड, gritty और यथार्थवादी चित्रण कुछ दृश्यों को बेहद परेशान करने वाला बना देता है। यदि आप हिंसा और मानव मनोवैज्ञानिक अंधकार को बिना किसी फिल्टर के देखना पसंद करते हैं, तो यह फिल्म आपके दिमाग को झकझोर कर रख देगी।
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