भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी-मार्क्सवादी (CPM) ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार को “फासीवादी” या “नव-फासीवादी” मानने से इनकार कर दिया है। पार्टी के इस बदलते रुख ने विपक्षी दलों में हलचल मचा दी है। कांग्रेस और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। यह विवाद सीपीएम के 24वें महाधिवेशन से पहले तैयार किए गए राजनीतिक प्रस्ताव के मसौदे से जुड़ा है, जिसे राज्य इकाइयों को भेजा गया है।
सीपीएम का बदला हुआ रुख
पहले सीपीएम बीजेपी और आरएसएस को “फासीवादी” एजेंडा लागू करने का आरोप लगाती रही।पार्टी के पूर्व महासचिव सीताराम येचुरी कई बार मोदी सरकार की तुलना फासीवाद से कर चुके हैं।अब सीपीएम ने साफ किया है कि भाजपा शासन में “नव-फासीवादी विशेषताएं” हैं, लेकिन इसे पूरी तरह फासीवादी कहना सही नहीं होगा।पार्टी ने पारंपरिक फासीवाद और नव-फासीवाद में अंतर बताते हुए कहा कि पारंपरिक फासीवाद सत्ता हथियाने के लिए लोकतंत्र को पूरी तरह खत्म कर देता था, जबकि नव-फासीवाद लोकतांत्रिक ढांचे के भीतर रहकर सत्ता केंद्रित करता है।
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विपक्ष में मचा घमासान
सीपीएम के इस रुख पर कांग्रेस और सीपीआई ने नाराजगी जताई।
कांग्रेस का हमला
केरल कांग्रेस ने सोशल मीडिया पर लिखा, “सीपीएम अब ‘कम्युनिस्ट जनता पार्टी’ बन गई है। भाजपा के साथ उसकी गुप्त डील अब उजागर हो चुकी है।”कांग्रेस नेता वी.डी. सतीशन ने आरोप लगाया कि सीपीएम मोदी सरकार के आगे आत्मसमर्पण कर रही है और यह भाजपा से उसकी “गुप्त साठगांठ” को दर्शाता है।
सीपीआई ने किया विरोध
सीपीआई के केरल राज्य सचिव बिनॉय विश्वम ने कहा, “आरएसएस एक फासीवादी संगठन है, और मोदी सरकार वास्तव में फासीवादी सरकार है। सीपीएम को अपनी स्थिति सुधारनी चाहिए।”सीपीआई का कहना है कि वामपंथी दलों को एकजुट रहना चाहिए और भाजपा को स्पष्ट रूप से फासीवादी बताना चाहिए।
राजनीतिक समीकरण और प्रभाव
विश्लेषकों का मानना है कि सीपीएम अपने रुख को संतुलित रखना चाहती है ताकि उसका चुनावी आधार प्रभावित न हो। लेकिन इससे कांग्रेस को फायदा मिल सकता है, खासकर केरल में, जहां वह मुख्य विपक्षी दल है। 2026 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस इस मुद्दे को भुनाकर सीपीएम को घेरने की कोशिश कर सकती है।