कोरोना से लोगों की जिंदगी पर पड़ रहा गंभीर असर, औसत जीवन प्रत्याशा में आई कमी, रिसर्च में हुआ खौफनाक खुलासा

कोरोना खबर आनंद फिल्म का एक बेहद मशहूर डायलॉग है. “जिंदगी बड़ी होनी चाहिए, जहांपनाह, लंबी नहीं”। उनके अनुमान दार्शनिक थे लेकिन वास्तविकता पर नजर डालें तो आज दुनिया में लोग पहले की तुलना में अधिक समय तक जीवित रह रहे हैं। करीब 73 साल तक. लेकिन कोरोना महामारी के कारण जीवन 1.6 साल कम हो गया है. यह जानकारी द लांसेट जर्नल के हालिया शोध में सामने आई है। 

नए शोध ने बढ़ाई चिंताएं… 

इस नए शोध से कोरोना के गंभीर स्वास्थ्य जोखिम सामने आए हैं। कई अन्य अध्ययनों से भी पता चला है कि कोरोना ने वैश्विक स्तर पर स्वास्थ्य को कैसे प्रभावित किया है। कोरोना संक्रमण ने जहां लाखों लोगों की जान ले ली, वहीं बचे लोगों को भी कोरोना ने नहीं छोड़ा। लोग कई अन्य बीमारियों से प्रभावित होने लगे जिनसे अभी भी उबर नहीं पाए हैं।

क्या हैं रिपोर्ट की मुख्य बातें?

शोध के मुताबिक, महामारी आने से पहले तक वैश्विक औसत जीवन प्रत्याशा यानी जीवन प्रत्याशा बढ़ रही थी। जीवन प्रत्याशा वह संख्या है जो एक व्यक्ति अपने जन्म के समय से जीने की उम्मीद कर सकता है। लोगों की औसत जीवन प्रत्याशा 1950 में 49 वर्ष से बढ़कर 2019 में 73 वर्ष से अधिक हो गई है। लेकिन 2019 से 2021 के बीच इसमें 1.6 की कमी आई है. विशेषज्ञों का कहना है कि यह कोरोना का सबसे गंभीर साइड इफेक्ट है। यह अध्ययन वर्ष 2020-2021 के दौरान आयोजित किया गया था। अध्ययन में पाया गया कि इस अवधि के दौरान 84 प्रतिशत देशों में जीवन प्रत्याशा में गिरावट देखी गई। मेक्सिको सिटी, पेरू और बोलीविया जैसी जगहें अधिक प्रभावित हुईं।

पुरुषों में मृत्यु दर 22% बढ़ी

शोधकर्ताओं के एक अनुमान के मुताबिक, इस अवधि के दौरान 15 वर्ष से अधिक उम्र वालों की मृत्यु दर पुरुषों में 22 प्रतिशत और महिलाओं में 17 प्रतिशत बढ़ गई। 2020 और 2021 में वैश्विक स्तर पर लगभग 13.1 करोड़ लोगों की मृत्यु हुई, जिनमें से लगभग 1.6 करोड़ लोगों की मृत्यु कोरोना महामारी के कारण हुई। शोध में यह भी पाया गया कि 2020 और 2021 में कोरोना महामारी के दौरान वैश्विक स्तर पर वयस्क मृत्यु दर में वृद्धि हुई। हालांकि, कोरोना महामारी के दौरान शिशु मृत्यु दर में कमी आई। 2019 की तुलना में 2021 में पांच साल से कम उम्र के बच्चों की पांच लाख कम मौतें हुईं।