उत्तर प्रदेश में पॉलीटेक्निक की कोर ब्रांचें बंद होने की कगार पर, घटती छात्रों की संख्या बनी बड़ी चुनौती

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उत्तर प्रदेश में सरकारी नौकरियों की कमी और निजी कंपनियों में रोजगार के सीमित अवसरों के चलते पॉलीटेक्निक के कोर ब्रांच बंद होने के कगार पर हैं। सरकारी और निजी पॉलीटेक्निक संस्थानों में छात्रों की संख्या लगातार घट रही है। हालात इतने खराब हो चुके हैं कि कई ट्रेड में 80% तक सीटें खाली रह गई हैं।

90 हजार से अधिक सीटें खाली

प्रदेश में राजकीय, अनुदानित, पीपीपी मॉडल और निजी मिलाकर कुल 370 पॉलीटेक्निक संस्थान संचालित हो रहे हैं। फार्मेसी को छोड़कर इंजीनियरिंग और अन्य टेक्निकल ट्रेड में कुल 1.59 लाख सीटें हैं। लेकिन इस सत्र में काउंसलिंग के बाद 90 हजार से अधिक सीटें खाली रह गईं।

छात्रों के एडमिशन न लेने के कारण दो दर्जन से अधिक पॉलीटेक्निक संस्थानों ने कई ब्रांचों की पढ़ाई बंद कर दी है। इससे साफ है कि पॉलीटेक्निक शिक्षा का क्रेज लगातार घटता जा रहा है।

इन ट्रेड्स में घटी छात्रों की संख्या

सिविल, इलेक्ट्रिकल, मैकेनिकल, आर्किटेक्ट, इंटीरियर डिजाइनिंग, टेक्सटाइल, पीजीडीसीएस और पीजीडीए जैसी दर्जनों ब्रांचों में छात्रों की संख्या में भारी गिरावट आई है। नई टेक्नोलॉजी और बदलते इंडस्ट्री के ट्रेंड के बावजूद कई नए कोर्स भी छात्रों को आकर्षित करने में असफल रहे हैं।

संयुक्त प्रवेश परीक्षा परिषद के सचिव संजीव सिंह के अनुसार, राजकीय कॉलेजों में 80% सीटें भरी गईं, लेकिन निजी संस्थानों में केवल 30% सीटों पर ही दाखिले हुए।

पुराने कोर्स की जरूरत नहीं?

‘पाथवे टू इम्प्लॉयमेंट समिट’ में महानिदेशक प्राविधिक शिक्षा अविनाश कृष्ण सिंह ने कहा कि कई पुराने कोर्स अब इंडस्ट्री की जरूरतों के अनुसार प्रासंगिक नहीं रहे। इस कारण उनकी सीटें खाली रह जा रही हैं। इससे संकेत मिलता है कि कोर्स को अपडेट करने और नए रोजगारपरक पाठ्यक्रम शामिल करने की आवश्यकता है।

छात्रों के एडमिशन कम होने के 5 मुख्य कारण

  1. सरकारी विभागों में पॉलीटेक्निक डिप्लोमा धारकों के लिए नौकरियों की भारी कमी।
  2. प्रदेश में निजी क्षेत्र में रोजगार के अवसर सीमित होना।
  3. निजी कंपनियों द्वारा केवल 10 से 15 हजार रुपये के कम वेतन पर दूसरे राज्यों में काम देने की प्रवृत्ति।
  4. पुराने कोर्सों में रोजगार की संभावनाएं कम हो जाना।
  5. संस्थानों की बदहाली और शिक्षकों की भारी कमी के कारण छात्रों की रुचि कम होना।