राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत के बयान को लेकर विवाद गहराता जा रहा है। हाल ही में आजादी पर उनकी टिप्पणी के बाद अब उनके एक और बयान ने नया बवाल खड़ा कर दिया है। यह बयान पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को लेकर है, जिसमें भागवत ने दावा किया कि प्रणब मुखर्जी ने राष्ट्रपति पद पर रहते हुए आदिवासियों की ‘घर वापसी’ का समर्थन किया था। इस बयान पर कैथोलिक बिशप कॉन्फ्रेंस ऑफ इंडिया (CBCI) ने कड़ी आपत्ति जताई है।
CBCI ने क्या कहा?
CBCI ने गुरुवार को एक बयान जारी कर मोहन भागवत के दावे की आलोचना की। संगठन ने कहा, “यह आश्चर्यजनक और दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारत के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के नाम पर एक निजी बातचीत को गढ़ा गया और उन्हें निशाना बनाया गया। यह बयान उनकी मृत्यु के बाद दिया गया, जिससे इसकी विश्वसनीयता पर सवाल उठता है।”
संगठन ने पूछा, “अगर यह इतना महत्वपूर्ण मुद्दा था, तो मोहन भागवत ने प्रणब मुखर्जी के जीवित रहते हुए इसे क्यों नहीं उठाया? उनके बयान को संदिग्ध नीयत से जोड़ा जा रहा है।” CBCI ने इसे आदिवासियों की आजादी और अधिकारों पर हमला बताते हुए कहा, “क्या वास्तव में संघ और अन्य संगठनों की ‘घर वापसी’ योजना राष्ट्रहित में है या यह आदिवासियों की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने का प्रयास है?”
क्या था मोहन भागवत का दावा?
भागवत ने सोमवार को एक कार्यक्रम में दावा किया था कि पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने ‘घर वापसी’ की तारीफ की थी। उनके अनुसार, प्रणब ने कहा था कि अगर संघ धर्म परिवर्तन के खिलाफ काम नहीं करता, तो आदिवासी समुदाय का एक हिस्सा राष्ट्र-विरोधी बन जाता।
CBCI की प्रतिक्रिया
CBCI ने कहा, “यह बयान न केवल ऐतिहासिक तथ्यों को तोड़-मरोड़कर पेश करता है, बल्कि 2.3% भारतीय ईसाई समुदाय की भावनाओं को भी आहत करता है।” उन्होंने आगे कहा कि ‘घर वापसी’ की प्रक्रिया हिंसक और विभाजनकारी है, जो गरीब और वंचित आदिवासियों पर सामाजिक दबाव डालती है।
‘घर वापसी’ पर उठाए सवाल
RSS और उससे जुड़े संगठन ‘घर वापसी’ शब्द का इस्तेमाल हिंदू धर्म में वापसी के लिए करते हैं, जो उन लोगों को संदर्भित करता है जो पहले हिंदू धर्म छोड़ चुके थे। CBCI ने इस पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह एक राष्ट्र-विरोधी कदम हो सकता है, जो आदिवासियों की स्वतंत्रता और उनके अधिकारों को छीनता है।
बढ़ता विवाद
इस विवाद ने राजनीतिक और धार्मिक स्तर पर चर्चाओं को तेज कर दिया है। जहां एक ओर RSS और उसके समर्थक भागवत के बयान को सही ठहरा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर ईसाई संगठनों और विपक्षी दलों ने इसे सांप्रदायिकता को बढ़ावा देने वाला करार दिया है।