Constitutional Law : राष्ट्रपति संदर्भ केस में CJI गंवई और सॉलिसिटर जनरल के बीच हुई हंसी-मजाक भरी बातचीत

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News India Live, Digital Desk: constitutional law : सर्वोच्च न्यायालय में जम्मू-कश्मीर से संबंधित अनुच्छेद 370 को रद्द करने पर दायर याचिकाओं और राष्ट्रपति संदर्भ मामले की सुनवाई के दौरान एक दिलचस्प पल आया. सुनवाई के दौरान भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) न्यायमूर्ति बीआर गवई और सॉलिसिटर जनरल (एसजी) तुषार मेहता के बीच हंसी-मजाक देखने को मिला, जब दोनों ने 'मुस्कुराने' पर हल्के-फुल्के अंदाज में टिप्पणी की.

यह सब तब शुरू हुआ जब सॉलिसिटर जनरल मेहता अपनी दलीलें दे रहे थे और बार-बार अदालती पीठ को सुझाव दे रहे थे कि अदालत 'मुस्कुरा भी सकती है' या 'थोड़ा सिर हिला भी सकती है' ताकि यह लगे कि पीठ को उनके तर्क समझ आ रहे हैं या वे उन्हें पसंद कर रहे हैं. इस पर, न्यायमूर्ति गवई ने मेहता की टिप्पणी का मज़ाक उड़ाते हुए कहा, "क्या करें अगर भगवान ने मुझे मुस्कुराने की सौगात दी है." सीजेआई के इस जवाब पर कोर्टरूम में मौजूद सभी लोग मुस्कुरा दिए.

यह घटना ऐसे समय में हुई जब मेहता तर्क दे रहे थे कि भारतीय संघ के साथ जम्मू और कश्मीर का विलय किसी भी 'शर्त' के साथ नहीं किया गया था. उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि कोई भी दस्तावेज यह साबित नहीं नहीं करता है कि जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय सशर्त था. इसके पहले, सीजेआई गवई ने सवाल किया था कि यदि अनुच्छेद 370 वास्तव में अस्थायी प्रकृति का था और एक 1935 के भारत अधिनियम द्वारा प्रांतों को दी गई स्वायत्तता जैसी परिस्थितियों के लिए आवश्यक था, तो वह 1935 अधिनियम का संदर्भ क्यों नहीं दिया गया. एसजी मेहता का तर्क सीधे तौर पर इस बिंदु पर जवाब दे रहा था, यह दोहराते हुए कि किसी भी पक्ष ने यह साबित करने के लिए कोई सबूत पेश नहीं किया कि जम्मू और कश्मीर का भारत में विलय किसी शर्त के अधीन था.

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