मार्च माह में नाभा के सरकारी रिपुदमन कॉलेज में बीए पार्ट वन की छात्रा से सामूहिक दुष्कर्म हुआ था। इस मामले में कल उच्च शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव ने दो प्रोफेसरों को बर्खास्त कर दिया और एक लाइब्रेरियन और एक असिस्टेंट प्रोफेसर को निलंबित कर दिया. प्रिंसिपल को तुरंत पद से हटाने के आदेश जारी कर दिए गए.
हालांकि गैंग रेप के आरोपियों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है, लेकिन कॉलेज में हुई इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना ने मौजूदा शिक्षा व्यवस्था पर कई सवालिया निशान खड़े कर दिए हैं. घटना की जांच के लिए तीन सदस्यीय कमेटी का गठन किया गया था, जिसकी रिपोर्ट के बाद लापरवाही बरतने पर उक्त कार्रवाई की गयी.
उस वक्त प्रिंसिपल ने कॉलेज में ऐसी किसी भी घटना से पूरी तरह इनकार किया था. कॉलेज में हुई इस दुखद घटना के विरोध में छात्र संगठन पंजाब स्टूडेंट्स यूनियन ने प्रदर्शन किया था और दोषियों के खिलाफ अनुकरणीय कार्रवाई की मांग की थी. पंजाब समेत पूरे देश में महिलाओं के खिलाफ दुष्कर्म की घटनाओं को रोकने के लिए ठोस प्रयासों की कमी का रोना लंबे समय से खलता रहा है। बेशक, बलात्कार के अपराधियों को कानून के मुताबिक सजा भी दी जाती है, लेकिन इसके बावजूद इसके लिए जिम्मेदारी और जवाबदेही तय करने में हमेशा ढिलाई बरती जाती है।
नाभा कॉलेज में हुई घटना की जांच के लिए बनी कमेटी की रिपोर्ट में कॉलेज प्रबंधन की लापरवाही सामने आयी, जिसके बाद प्रधान सचिव ने ठोस कार्रवाई की, जो एक मिसाल बनेगी. हालांकि इसमें कॉलेज प्रबंधन की कोई भूमिका नजर नहीं आ रही है, लेकिन ढुलमुल रवैया, प्रशासनिक कमियां और लापरवाही ही इस तरह की घटना होने का कारण है. इसलिए ऐसे मामलों में उच्च शिक्षा विभाग की तरह ठोस कार्रवाई करना समय की मांग है क्योंकि इससे प्रबंधन में जिम्मेदारी और जवाबदेही तय होगी और अपना काम पूरी ईमानदारी और तत्परता से करने की भावना विकसित होगी।
यहां पीड़ित छात्र और छात्र संगठन की भी तारीफ की जानी चाहिए कि उन्होंने इस मामले में हार नहीं मानी. उन्होंने न केवल घटना की शिकायत पुलिस से की, बल्कि कार्रवाई के लिए दबाव बनाने के लिए सामाजिक, सामूहिक भागीदारी से अपना विरोध भी जताया और उच्च अधिकारियों को कार्रवाई के लिए मजबूर किया. इसी आलोक में 90 के दशक में महल कलां में किरणजीत कौर के सामूहिक बलात्कार और हत्या के बाद लड़ी गई न्याय की लड़ाई पूरी दुनिया में एक मिसाल बन गई। ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए न सिर्फ सामाजिक जागरूकता बढ़ाई जाए, बल्कि महिला-पुरुष समानता के पीछे के कारणों पर भी गौर किया जाए।