Change in Bastar : पांडुम कैफे, जहां नक्सल पीड़ित और पूर्व नक्सली साथ मिलकर परोस रहे हैं जिंदगी

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News India Live, Digital Desk: छत्तीसगढ़ का बस्तर, एक ऐसा नाम जो दशकों तक हिंसा, डर और नक्सलवाद का पर्याय बना रहा. लेकिन अब इसी रक्तरंजित धरती पर उम्मीद और बदलाव की एक नई इबारत लिखी जा रही है. इस बदलाव का सबसे खूबसूरत प्रतीक बनकर उभरा है जगदलपुर का "पांडुम कैफे". यह सिर्फ चाय-कॉफी की दुकान नहीं, बल्कि एक ऐसी जगह है जहां कभी एक-दूसरे के दुश्मन रहे लोग, आज एक ही छत के नीचे कंधे से कंधा मिलाकर एक शांत भविष्य का सपना बुन रहे हैं.

पांडुम कैफे की सबसे अनूठी बात यह है कि इसे चलाने वाले हाथ वो हैं, जिन्होंने या तो नक्सलवाद की हिंसा का दंश झेला है या फिर खुद कभी इस हिंसक रास्ते का हिस्सा थे. जी हां, यहां नक्सली हिंसा के शिकार हुए पीड़ित और हथियार डाल चुके पूर्व नक्सली एक साथ काम कर रहे हैं.

क्या है 'पांडुम' का मतलब?

स्थानीय गोंडी बोली में 'पांडुम' शब्द का अर्थ होता है 'त्योहार'. यह कैफे सचमुच बस्तर में शांति, सद्भाव और एक नई शुरुआत के त्योहार का जश्न मना रहा है. बस्तर पुलिस और जिला प्रशासन की इस अनूठी पहल का मकसद उन लोगों को समाज में सम्मानजनक स्थान दिलाना है, जो अतीत के अंधेरों को पीछे छोड़कर मुख्यधारा में लौटना चाहते हैं.

"हर कप में है एक कहानी"

कैफे की टैगलाइन है- "Where every cup tells a story" (जहां हर कप एक कहानी कहता है). और यह बिल्कुल सच है. यहां काम करने वाला हर कर्मचारी अपने आप में एक जीती-जागती कहानी है- दर्द की, भटकाव की, और फिर उम्मीद की.

कैफे में काम करने वाली एक आत्मसमर्पण कर चुकी महिला नक्सली ने नम आंखों से बताया, "हमने जंगल में सिर्फ बंदूक और बारूद की गंध महसूस की थी. आज जब अपने हाथों से लोगों को कॉफी परोसते हैं और वे मुस्कुराकर शुक्रिया कहते हैं, तो लगता है कि जिंदगी कितनी खूबसूरत हो सकती है. यह काम हमें सिर्फ पैसा नहीं, बल्कि शांति और सम्मान दे रहा है."

सरकार का भरोसा, मेहनत से मिला सम्मान

यह कैफे सरकार की 'आत्मसमर्पण और पुनर्वास नीति' का एक सफल उदाहरण है. यहां काम करने वाले सभी युवाओं को जिला प्रशासन और पुलिस ने हॉस्पिटैलिटी, ग्राहक सेवा और कैफे मैनेजमेंट की बाकायदा ट्रेनिंग दी है. सोमवार को छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने खुद इस कैफे का उद्घाटन किया और यहां काम करने वाले युवाओं का हौसला बढ़ाया.

पांडुम कैफे इस बात का प्रमाण है कि जिन हाथों ने कभी बंदूक उठाई थी, अगर उन्हें सही मौका और भरोसा दिया जाए तो वे समाज के निर्माण में सबसे बड़ा योगदान दे सकते हैं. यह कैफे सिर्फ कॉफी नहीं, बल्कि बस्तर के एक शांत और समृद्ध भविष्य की उम्मीद परोस रहा है.

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