झारखंड विधानसभा चुनाव में सियासी गर्मी बढ़ती जा रही है. बीजेपी सत्ता में वापसी के लिए हर संभव कोशिश कर रही है. ऐसे में उनकी नजर राज्य के सबसे बड़े वोट बैंक आदिवासी समुदाय पर है, जिससे वह आदिवासी समुदाय का दिल जीतने की कोशिश कर रहे हैं. बीजेपी के पास अर्जुन मुंडा और बाबूलाल मरांडी जैसे आदिवासी चेहरे हैं, लेकिन उनका प्रभाव अब पहले जैसा नहीं है. बीजेपी सीएम हेमंत सोरेन के खिलाफ चुनाव लड़ने के लिए एक बड़े आदिवासी चेहरे की तलाश कर रही है, और ऐसी अटकलें हैं कि उसकी रणनीति पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन को फिर से खड़ा करने की है।
क्या बीजेपी के लिए आदिवासी समुदाय के वोटबैंक को जीतना आसान होगा?
जेएमएम के दिग्गज नेता और पूर्व सीएम चंपई सोरेन तख्तापलट पर उतर आए हैं. अपने करीबी विधायकों के साथ दिल्ली में डेरा डाले बैठे चंपई ने सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए कहा है कि उनके लिए सभी विकल्प खुले हैं. माना जा रहा है कि चंपई सोरेन और उनके कुछ करीबी विधायक बीजेपी में शामिल हो सकते हैं. क्या चंपई सोरेन के आने से भाजपा के लिए आदिवासी समुदाय के वोटबैंक को जीतना आसान हो जाएगा और क्या यह झामुमो के लिए एक बड़ा झटका साबित होगा?
चंपई सोरेन आदिवासी समुदाय के बड़े नेता माने जाते हैं. वह सात बार विधायक और झारखंड के मुख्यमंत्री रहे हैं. चंपई झारखंड के कोल्हान जिले से हैं और यहां 14 विधानसभा सीटें और 2 लोकसभा सीटें हैं। अगर चंपई बीजेपी में शामिल होते हैं तो न सिर्फ सरायकेला बल्कि पूरे कोल्हान क्षेत्र में बीजेपी का कद बढ़ जाएगा. बीजेपी की सत्ता की राह हो सकती है आसान!
झारखंड में आदिवासियों की आबादी सबसे ज्यादा है
झारखंड में सबसे ज्यादा 26 फीसदी आदिवासी आबादी है, जो राजनीतिक दलों के सियासी समीकरण बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखती है. राज्य विधानसभा की कुल 81 सीटों में से 28 आदिवासी समुदाय के लिए आरक्षित हैं। ये सीटें खूंटी, सिंहभूम, लोहरदगा, दुमका और साहिबगंज जैसे जिलों में हैं. राज्य में सत्ता हासिल करने के लिए ये सीटें काफी अहम मानी जा रही हैं.
आदिवासी वोट बैंक सबसे अहम फैक्टर
झारखंड में आदिवासी वोट बैंक सबसे अहम है और चंपई सोरेन बड़े आदिवासी नेता माने जाते हैं. बीजेपी के पास अर्जुन मुंडा और बाबूलाल मरांडी हैं, चंपई सोरेन के आने से आदिवासी समुदाय में बीजेपी का भरोसा बढ़ेगा. आदिवासी समुदाय के लिए आरक्षित 28 विधानसभा सीटों में से, भाजपा के पास वर्तमान में दक्षिण छोटानागपुर क्षेत्र में केवल दो सीटें हैं।
पिछले विधानसभा चुनाव का समीकरण
पिछले विधानसभा चुनाव में संताल और कोल्हान क्षेत्र की सभी आदिवासी सीटों पर बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा था. 2014 के विधानसभा चुनाव में अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित 28 सीटों में से बीजेपी और झारखंड मुक्ति मोर्चा ने 13-13 सीटें जीती थीं. जबकि दो सीटों पर अन्य उम्मीदवारों ने जीत हासिल की. इस तरह बीजेपी ने चंपई सोरेन के जरिए आदिवासी समुदाय का दिल जीतने की योजना बनाई है. अब देखना यह है कि चंपा की बीजेपी में एंट्री की पटकथा कैसे लिखी जाती है.