केंद्र सरकार का जम्मू कश्मीर के साथ विश्वासघात बेराेकटाेक जारी है : मल्लिकार्जुन खरगे

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नई दिल्ली, 13 जुलाई (हि.स.)। जम्मू कश्मीर के उपराज्यपाल (एलजी) काे अधिक शक्तियां दिए जाने पर कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। शनिवार काे साेशल मीडिया एक्स पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए खरगे ने कहा कि केंद्र सरकार का जम्मू कश्मीर के साथ विश्वासघात बेराेकटाेक जारी है। उन्हाेंने कहा कि केंद्र सरकार जम्मू कश्मीर काे पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करने में देरी करना चाहती है। वह राज्य सरकार काे उपराज्यपाल की दया पर रखना चाहती है।

खरगे ने एक्स पाेस्ट पर कहा है कि जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 की धारा 55 के तहत नियमों में संशोधन करके एलजी को अधिक शक्तियां देने वाली नई धाराओं को शामिल करने के केवल दो अर्थ हैं। पहला यह कि भले ही सुप्रीम कोर्ट ने 30 सितंबर, 2024 तक विधानसभा चुनावों को अनिवार्य कर दिया है, लेकिन मोदी सरकार जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करने में देरी करना चाहती है। दूसरा यह की कि भले ही पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल कर दिया गया हो, लेकिन वह नवनिर्वाचित राज्य सरकार को एलजी की दया पर रखना चाहता है।

उल्लेखनीय है कि गृह मंत्रालय ने जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम में संशाेधन किया है। गृह मंत्रालय के फैसले के बाद अब जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल की प्रशासनिक भूमिका का दायरे बढ़ जाएगा। इस संशोधन के बाद उपराज्यपाल को अब पुलिस, कानून व्यवस्था, एआईएस(आल इंडिया सर्विसेज) से जुड़े मामलों में ज्यादा अधिकार होंगे। अब तक एआईएस से जुड़े मामलों (जिनमें वित्त विभाग की सहमति जरूरी होती थी) और उनके तबादलों और नियुक्तियों के लिए वित्त विभाग की मंजूरी जरूरी थी लेकिन अब उपराज्यपाल को इन मामलों में भी ज्यादा अधिकार मिल गए हैं। इसके अलावा अब महाधिवक्ता, कानून अधिकारियों की नियुक्ति और मुकदमा चलाने की अनुमति देने या इंकार करने, अपील दायर करने से संबंधित प्रस्ताव पहले उपराज्यपाल के सामने रखे जाएंगे।

गृहमंत्रालय ने जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 की धारा 55 के तहत जिन संशोधित नियमों को अधिसूचित किया है। इसमें उपराज्यपाल की भूमिका को परिभाषित करने वाले नए खंड जोड़े गए हैं। अधिसूचना में कहा गया है कि कानून के तहत उपराज्यपाल के विवेक का इस्तेमाल करने के लिए पुलिस, कानून व्यवस्था, एआईएस और भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) से संबंधित किसी भी प्रस्ताव को वित्त विभाग की पूर्व सहमति की आवश्यकता नहीं होगी, बशर्ते कि प्रस्ताव को मुख्य सचिव के माध्यम से उपराज्यपाल के समक्ष रखा गया हो।