केंद्र ने मौलाना आजाद एजुकेशन फाउंडेशन बंद करने के फैसले का किया बचाव, 13 मार्च को सुनवाई

नई दिल्ली, 12 मार्च (हि.स.)। केंद्र सरकार ने मौलाना आजाद एजुकेशन फाउंडेशन को बंद करने के फैसले का बचाव करते हुए कहा है कि इस फाउंडेशन की स्थापना तब हुई थी जब अल्पसंख्यक मामलों का मंत्रालय नहीं था। केंद्र सरकार ने कहा है कि जब अल्पसंख्यकों के विकास के लिए सरकार काम कर रही है तो ये काम किसी और को नहीं दिया जा सकता है। हाई कोर्ट में इस याचिका पर 13 मार्च को सुनवाई होगी।

मौलाना आजाद एजुकेशन फाउंडेशन को बंद करने के फैसले का बचाव करते हुए एएसजी चेतन शर्मा ने कहा कि फिलहाल अल्पसंख्यकों के विकास के लिए एक विशेष मंत्रालय है। इस मंत्रालय के पास पर्याप्त स्टाफ हैं। ये मंत्रालय अल्पसंख्यकों की जरूरतों के मुताबिक काम करती है। ऐसे में अल्पसंख्यकों के विकास का काम किसी संस्था विशेष को देने के पुराने ढर्रे पर नहीं किया जा सकता है। एएसजी ने कहा कि अल्पसंख्यक मंत्रालय ने अल्पसंख्यकों के लिए 1600 प्रोजेक्ट शुरू किए हैं। अभी उसमें से 523 प्रोजेक्ट पूरे होने हैं। मौलाना आजाद एजुकेशन फाउंडेशन को बंद करने का फैसला कानूनसम्मत है।

उल्लेखनीय है कि 6 मार्च को कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था। याचिका डॉ. सईदा सैयदेन हमीद, डॉ जॉन दयाल और दया सिंह ने दायर की है। याचिका में कहा गया है कि मौलाना आजाद एजुकेशन फाउंडेशन की फंडिंग केंद्र सरकार करती है और इसका लक्ष्य मुस्लिम समुदाय के वंचित तबके को शिक्षा मुहैया कराना है। याचिका में मौलाना आजाद एजुकेशन फाउंडेशन को बंद करने के सेंट्रल वक्फ काउंसिल के प्रस्ताव पर अल्पसंख्यक मंत्रालय की ओर से मुहर लगाने के आदेश को चुनौती दी गई है। सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से पेश वकील ने कहा कि उन्हें कोई निर्देश नहीं मिला है तब कोर्ट ने 7 मार्च को निर्देश लेकर आने को कहा।

याचिका में कहा गया है कि केंद्र सरकार के इस आदेश से मुस्लिम समुदाय के गरीब, जरूरतमंद और मेधावी खासकर छात्राओं का काफी नुकसान होगा। फाउंडेशन को बंद करने का प्रस्ताव देना सेंट्रल वक्फ काउंसिल के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है क्योंकि ये फाउंडेशन सोसायटी रजिस्ट्रेशन एक्ट के तहत रजिस्टर्ड है। ऐसे में फाउंडेशन को बंद करना सोसायटी रजिस्ट्रेशन एक्ट की धारा 13 के प्रावधानों के तहत होना चाहिए। सोसायटी रजिस्ट्रेशन एक्ट के प्रावधान के तहत किसी सोसायटी को समाप्त करने पर उसे दूसरी सोसायटी को सौंपा जाता है और इसके लिए 60 फीसदी सदस्यों की सहमति जरूरी होती है।