Caste Politics India : कर्नाटक में जाति जनगणना का बड़ा विवाद, बीजेपी ने कहा, ये हिंदुओं को बांटने की कोशिश है

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News India Live, Digital Desk: दक्षिण भारत के बड़े राज्य कर्नाटक में इन दिनों राजनीति का पारा चढ़ा हुआ है. कर्नाटक की सरकार ने अब 'जाति जनगणना' कराने का फ़ैसला लिया है, लेकिन इस फ़ैसले पर विवाद खड़ा हो गया है. विपक्षी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने इसे 'जनता विरोधी' बताते हुए सीधा आरोप लगाया है कि यह हिंदुओं को धर्म और जाति के आधार पर बाँटने की साज़िश है. तो क्या है यह जाति जनगणना और क्यों इसको लेकर इतना हंगामा हो रहा है? आइए समझते हैं.

क्या है यह जाति जनगणना और क्यों हो रही है?

जाति जनगणना एक ऐसा सर्वे है, जिसमें लोगों की सामाजिक और शैक्षणिक जानकारी इकट्ठा की जाती है. इसका मक़सद राज्य में हर जाति के लोगों की संख्या, उनकी आर्थिक स्थिति और सामाजिक स्तर को समझना होता है. कर्नाटक सरकार का कहना है कि यह सर्वे समाज के सभी वर्गों को उनका वाजिब हक दिलवाने, सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने और सरकार की योजनाओं को ज़्यादा बेहतर तरीक़े से लोगों तक पहुँचाने में मदद करेगा. पिछले कुछ समय से यह मांग भी उठ रही थी कि मौजूदा आरक्षण व्यवस्था में बदलाव और उसमें शामिल होने वाले वर्गों की पहचान के लिए ऐसी जानकारी ज़रूरी है.

बीजेपी को क्यों है इस पर आपत्ति?

भारतीय जनता पार्टी ने इस सर्वे पर बहुत कड़ी आपत्ति जताई है. बीजेपी का कहना है कि ये पूरी तरह से एक चुनावी स्टंट है और इसका असली मक़सद सिर्फ वोट बटोरने के लिए समाज में फूट डालना है.

  • हिंदुओं को बांटने का आरोप: बीजेपी के कई नेताओं ने इसे सीधे तौर पर हिंदुओं को जातियों में बाँटने की कोशिश बताया है. उनका मानना है कि यह धार्मिक समुदायों के बीच मनमुटाव पैदा करेगा.
  • चुनावी फ़ायदा: बीजेपी का मानना है कि सत्ताधारी पार्टी इसके ज़रिए वोट बैंक की राजनीति कर रही है. सर्वे के नतीजे कुछ ऐसे पेश किए जा सकते हैं, जिससे कुछ ख़ास जाति समूहों को राजनीतिक रूप से फ़ायदा मिल सके.
  • 'जनता विरोधी' करार: बीजेपी का तर्क है कि ऐसे सर्वे लोगों के बीच अनावश्यक सामाजिक तनाव पैदा करते हैं और सरकार का ध्यान असल मुद्दों से हटाते हैं.

यह सर्वे वैसे तो 2015 में ही शुरू हुआ था, जब कर्नाटक में सिद्धारमैया के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार थी. तब 'कर्नाटक राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग' ने यह सर्वे किया था और इसे 'सामाजिक और शैक्षणिक सर्वेक्षण' नाम दिया गया था. लेकिन उस रिपोर्ट को कभी सार्वजनिक नहीं किया गया. अब मौजूदा सरकार इस रिपोर्ट को जारी करने या एक नया सर्वे कराने की तैयारी में है, जिसने इस मुद्दे को एक बार फिर गरमा दिया है.

भारत में कई राज्यों, ख़ासकर बिहार में, जाति जनगणना हुई है, जिसके बाद आरक्षण और सामाजिक न्याय को लेकर बड़ी बहसें छिड़ी हैं. कर्नाटक में भी यह सर्वे कई राजनीतिक समीकरणों को बदल सकता है और आगामी चुनावों पर इसका बड़ा असर पड़ सकता है. जहाँ एक तरफ़ सत्ताधारी दल इसे 'सबका साथ, सबका विकास' की दिशा में एक ज़रूरी क़दम बता रहा है, वहीं बीजेपी इसे 'समाज को बाँटने' और 'वोट की राजनीति' बताकर तीखा हमला कर रही है.

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