आज 23 मार्च 2025 शहीद भगत सिंह की शहादत को याद करने का दिन है। इस दिन एक प्रश्न फिर उठता है: क्या महात्मा गांधी भगत सिंह की फांसी रोक सकते थे? इस प्रश्न का उत्तर इतिहास के पन्नों में छिपा है और इसका केंद्र है गांधी-इरविन समझौता। यह समझौता 5 मार्च 1931 को महात्मा गांधी और तत्कालीन वायसराय लॉर्ड इरविन के बीच हस्ताक्षरित हुआ था। इसकी पृष्ठभूमि 1930 के दशक की है, जब ब्रिटिश सरकार ने भारतीयों पर नमक बनाने या बेचने पर प्रतिबंध लगा दिया था। इसके विरोध में गांधीजी ने साबरमती आश्रम से दांडी तक नमक यात्रा का नेतृत्व किया, जिसे दांडी नमक सत्याग्रह के नाम से जाना गया। उन्होंने समुद्र तट से नमक उठाकर ब्रिटिश कानून तोड़ा, जिसके कारण उन्हें जेल में डाल दिया गया। इस घटना से वैश्विक बहस छिड़ गई और ब्रिटिश सरकार पर दबाव बढ़ गया।
गांधी-इरविन समझौते का जन्म
जब लॉर्ड इरविन पर दबाव बढ़ गया और उनके पास कोई विकल्प नहीं बचा तो उन्होंने 5 मार्च 1931 को गांधीजी के साथ समझौता कर लिया। इस समझौते में कई शर्तें थीं, जिनमें से मुख्य यह थी कि हिंसा के आरोपी को छोड़कर सभी राजनीतिक कैदियों को रिहा किया जाएगा। इस समय जेल में बंद भगत सिंह भी सुर्खियों में थे, जिन्हें अक्टूबर 1930 में मौत की सजा सुनाई गई थी। कांग्रेस और जनता को उम्मीद थी कि गांधीजी भगत सिंह को बचा लेंगे।
दो अलग रास्ते
स्वतंत्रता संग्राम में दो विचारधाराएँ स्पष्ट थीं। एक था गांधीजी का अहिंसक आंदोलन, जिसे व्यापक समर्थन मिला। दूसरा था क्रांतिकारियों का हिंसक संघर्ष, जिसका नेतृत्व भगत सिंह जैसे युवकों ने किया। यह समूह, संख्या में छोटा होने के बावजूद, वैचारिक रूप से मजबूत था। भगत सिंह का मानना था कि गांधीजी का आंदोलन पूंजीपतियों और जमींदारों के हितों से जुड़ा था, जबकि उनका लक्ष्य समाजवादी क्रांति था। युवा लोगों के बीच उनकी लोकप्रियता बढ़ रही थी और ब्रिटेन में भी उनके समर्थन में आवाजें उठने लगीं।
गांधीजी की भूमिका
कुछ इतिहासकारों का मानना है कि गांधीजी नहीं चाहते थे कि क्रांतिकारियों का प्रभाव बढ़े। इरविन और गांधीजी दोनों का मानना था कि भगत सिंह की फांसी रोकने से हिंसा के रास्ते को बढ़ावा मिलेगा। गांधीजी ने इरविन को एक पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने सिर्फ इतना कहा कि बेहतर होगा कि भगत सिंह को फांसी न दी जाए। लेकिन उन्होंने इसके लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया। समझौते में फांसी स्थगित करने की कोई शर्त नहीं थी।
पत्र और वाचा की सच्चाई
गांधीजी ने इरविन से बातचीत में कहा था कि अगर इन युवकों की सजा माफ कर दी जाए तो वे भविष्य में हिंसा का सहारा नहीं लेंगे, लेकिन भगत सिंह ने इस कथन को दृढ़तापूर्वक खारिज कर दिया। जनता और कांग्रेस के दबाव के बावजूद गांधीजी ने फांसी रोकने के लिए समझौते में कोई विशेष प्रावधान शामिल नहीं किया। इससे यह प्रश्न उठता है कि यदि समझौता राष्ट्रहित में था, तो क्या गांधीजी भगत सिंह के संघर्ष को राष्ट्रीय आंदोलन का हिस्सा नहीं मानते थे?