आजकल महिलाएं अनचाहे गर्भ से बचने के लिए कई तरह के गर्भनिरोधक तरीकों का इस्तेमाल करती हैं। इन्हीं में से एक है गर्भनिरोधक गोलियां। ये गोलियां हॉरमोन के ज़रिए ओव्यूलेशन को रोककर गर्भधारण को रोकती हैं। लेकिन कुछ महिलाओं का यह भी मानना है कि इन गोलियों के सेवन से उनका मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित होता है। क्या यह सच है? क्या गर्भनिरोधक गोलियां वाकई मानसिक स्वास्थ्य को बिगाड़ सकती हैं?
आइये इस सवाल का जवाब इस लेख में ढूंढते हैं। हमने इस विषय पर डॉक्टरों और विशेषज्ञों से बात की है और आपको उनकी राय से अवगत कराएंगे। ट्रूलाइफ फैमिली हेल्थ क्लिनिक की स्त्री रोग विशेषज्ञ और प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉ. श्वेता मिश्रा का कहना है कि गर्भनिरोधक और मानसिक स्वास्थ्य का आपस में गहरा संबंध है। एक डॉक्टर के तौर पर मैंने देखा है कि महिलाओं को गर्भनिरोधक चुनते समय कई बातों का ध्यान रखना पड़ता है। हार्मोनल गर्भनिरोधक गोलियां, इंजेक्शन या आईयूडी जैसी दवाएं सबसे आम हैं। ये दवाएं एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन जैसे हार्मोन को प्रभावित करती हैं, जो मूड और भावनात्मक संतुलन को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसलिए, इन हार्मोन के स्तर में बदलाव एक महिला के मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है।
मूड स्विंग, चिंता, अवसाद जैसी समस्याएं
उन्होंने आगे कहा कि कुछ महिलाओं को इन दवाओं से नियमित पीरियड्स, कम दर्द और प्रीमेंस्ट्रुअल सिंड्रोम (पीएमएस) से राहत मिलती है। वहीं, कुछ महिलाओं को मूड स्विंग, चिंता, डिप्रेशन जैसी समस्याएं हो सकती हैं। कंडोम या कॉपर आईयूडी जैसे गैर-हार्मोनल गर्भनिरोधक तरीकों का हार्मोन पर सीधा असर नहीं होता, इसलिए इनका मानसिक स्वास्थ्य पर कम असर होता है। लेकिन इन तरीकों की प्रभावशीलता और उपयोग में आसानी मानसिक स्थिति को भी प्रभावित कर सकती है। इसलिए, सही गर्भनिरोधक चुनना जरूरी है।
डॉक्टर से खुलकर बात करें
डॉ. श्वेता ने कहा कि डॉक्टर से खुलकर बात करें, अपनी मेडिकल हिस्ट्री बताएं और मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी किसी भी समस्या के बारे में जानकारी दें। डॉक्टर आपकी ज़रूरत के हिसाब से दवा या तरीका चुनेंगे। साथ ही नियमित जांच करवाएं ताकि किसी भी तरह के साइड इफ़ेक्ट पर नज़र रखी जा सके। डॉक्टर से बात करके और अपने शरीर को समझकर आप शारीरिक और मानसिक दोनों तरह से अपने लिए सही गर्भनिरोधक चुन सकती हैं।