देश में खुदरा महंगाई के आंकड़े लगातार तीसरे महीने बढ़े हैं. अक्टूबर में खुदरा महंगाई दर 14 महीने के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई। किसी को अंदाजा नहीं था कि खुदरा महंगाई दर छह फीसदी के पार पहुंच जाएगी. जो आरबीआई के टॉलरेंस लेवल से भी ज्यादा है. जिससे चिंता बढ़ने की संभावना है। क्योंकि, मंडवारी की मार आम लोगों पर रोजमर्रा की जरूरतों के साथ-साथ मासिक ईएमआई पर भी पड़ रही है।
महंगाई मुझे कुचल रही है
देश की खुदरा महंगाई दर जुलाई में गिरकर पांच साल के निचले स्तर 3.60 फीसदी पर आ गई. अगस्त में यह थोड़ा बढ़कर 3.65 फीसदी हो गई. सितंबर महीने में खुदरा महंगाई दर में तेज उछाल आया और यह आंकड़ा 5.49 फीसदी पर पहुंच गया. अक्टूबर के लिए खुदरा मुद्रास्फीति का अनुमान अधिक था, लेकिन 6 प्रतिशत से नीचे, 5.8 से 5.9 प्रतिशत के बीच, जो 14 महीने का उच्चतम स्तर था।
देश में खुदरा महंगाई दर घटकर 6.21 फीसदी पर आ गई है. जो देश के लिए एक बड़ा झटका है. साफ है कि जुलाई के बाद से तीन महीनों में देश की खुदरा महंगाई दर 72 फीसदी से ज्यादा बढ़ गई है. अगर शहरी और ग्रामीण महंगाई की बात करें तो इसमें भी बढ़ोतरी देखी गई है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, अक्टूबर में शहरी महंगाई दर 5.62 फीसदी रही, जबकि ग्रामीण महंगाई दर गिरकर 6.68 फीसदी पर आ गई.
खाद्य महंगाई सबसे बड़ी दुश्मन है
हेडलाइन मुद्रास्फीति में वृद्धि के पीछे खाद्य मुद्रास्फीति का सबसे बड़ा योगदान माना जाता है, जो अक्टूबर में 11 प्रतिशत के करीब पहुंच गई। जिसमें सब्जियों के दाम 57 महीने के शिखर पर पहुंच गए हैं. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक अक्टूबर महीने में सब्जियों की महंगाई दर 42.2 फीसदी देखने को मिली है. सब्जियों में टमाटर और प्याज की कीमतों पर सबसे ज्यादा असर देखने को मिला है। खासतौर पर अक्टूबर के त्योहारों के दौरान प्याज की कीमतें आसमान छूती हैं।
वहीं सब्जियों के दाम औसतन 70 से 100 रुपये प्रति किलोग्राम के बीच बिक रहे हैं. जिसका असर महंगाई के रूप में देखने को मिला है. यह मामला तब था जब अक्टूबर में सरकारी एजेंसियों ने प्याज को सस्ता करने के लिए 35 रुपये प्रति किलो पर बेचना शुरू किया और सरकार ने प्याज का बफर स्टॉक जारी किया। कहा जा रहा है कि महंगाई के आंकड़े आरबीआई के सहनशीलता स्तर से आगे निकल गए हैं।
लोन की ईएमआई पर क्या होगा असर?
आरबीआई के लिए सबसे बड़ी समस्या यह है कि अगर देश में महंगाई दर बढ़ रही है तो लोन की ईएमआई कैसे कम की जाए। सबसे पहले आरबीआई का फोकस महंगाई कम करने पर होगा. साथ ही, हमें इसे उस स्तर पर लाने के लिए लगातार प्रयासरत रहना होगा जहां ऐसा लगे कि अब लोन की ईएमआई कम हो सकती है। इसमें समय लग सकता है. भले ही पिछले जुलाई और अगस्त में मुद्रास्फीति की दर 4 प्रतिशत से नीचे थी, खाद्य मुद्रास्फीति दर अभी भी आरबीआई एमपीसी के लिए चिंता का विषय है।
हालांकि जुलाई और अगस्त महीने में यह आंकड़ा 6 फीसदी से कम था, लेकिन सितंबर महीने में यह आंकड़ा एक बार फिर 9 फीसदी से ऊपर पहुंच गया. अक्टूबर की नीति बैठक में आरबीआई गवर्नर ने यह भी उल्लेख किया कि खाद्य मुद्रास्फीति एक बड़ी चिंता का विषय है। जो आने वाले दिनों में देखने को मिलेगा. ऐसे में आरबीआई के पास आने वाले दिनों में नीतिगत दर स्थिर रखने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।
ब्याज दरें कब तक स्थिर रह सकती हैं?
वैसे कई विशेषज्ञों ने इसकी भविष्यवाणी की है. कुछ विशेषज्ञों का अनुमान है कि अक्टूबर महीने में रेपो रेट में कटौती हो सकती है. यह पूर्वानुमान ऐसे समय आया है जब आरबीआई ने अक्टूबर की नीति बैठक में अपना रुख बदला और संकेत दिया कि आने वाले दिनों में ब्याज दरों में कटौती की जा सकती है।
अब जब अक्टूबर के आखिरी महीने और नवंबर महीने के लिए भी महंगाई के आंकड़े आ गए हैं तो अनुमान छह फीसदी के आसपास लगाया जा रहा है. ऐसे में दिसंबर महीने में नीतिगत दर में कमी होना मुश्किल लग रहा है. जानकारी के मुताबिक चालू वित्त वर्ष की आखिरी बैठक यानी फरवरी 2015 में भी ब्याज दर में कटौती होना मुश्किल है. ऐसे में आम लोगों को अपने लोन की ईएमआई कम होने के लिए थोड़ा और इंतजार करना पड़ सकता है।