पायजामा का नाड़ा तोड़ना और कपड़े उतारने की कोशिश करना…बलात्कार नहीं है: इलाहाबाद उच्च न्यायालय

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इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण आदेश में कहा है कि नाबालिग पीड़िता के स्तनों को पकड़ना, उसके पायजामे का निचला हिस्सा फाड़ना और उसे पुलिया से नीचे खींचने का प्रयास करना उसके खिलाफ बलात्कार या बलात्कार के प्रयास का आरोप लगाने के लिए पर्याप्त नहीं है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय की एकल पीठ का यह फैसला अब सुर्खियों में आ गया है। सोशल मीडिया पर इसकी खूब चर्चा हो रही है। 

उल्लेखनीय है कि कासगंज की एक अदालत ने दो आरोपियों पवन और आकाश को आईपीसी की धारा 376 (बलात्कार) और पोक्सो अधिनियम की धारा 18 के तहत तलब किया था। आरोपियों पर एक नाबालिग से बलात्कार का प्रयास करने का आरोप था। घटना 2021 की है। आरोपी ने लिफ्ट देने के बहाने लड़की को रोका और उसके साथ जबरदस्ती करने की कोशिश की। राहगीरों के आने पर आरोपी भाग गए। इसके बाद पीड़ित परिवार ने शिकायत दर्ज कराई। 

हाईकोर्ट में आरोपी की दलील:
आरोपी ने निचली अदालत के इस समन को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी। उन्होंने तर्क दिया कि उनके खिलाफ शिकायत को गंभीरता से लिया जाना चाहिए। लेकिन उन पर आईपीसी की धारा 376 (बलात्कार) नहीं लगाई जानी चाहिए। 

हाईकोर्ट का यह बड़ा फैसला
जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा की एकल पीठ ने 17 मार्च 2025 को सुनाया। उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि बलात्कार के प्रयास का आरोप लगाने से पहले यह साबित किया जाना चाहिए कि कृत्य ‘तैयारी’ के चरण से आगे बढ़ चुका है और ‘वास्तविक प्रयास’ की श्रेणी में आता है। 

अदालत ने कहा कि 
गवाहों ने यह नहीं कहा कि पीड़िता नग्न थी या उसके कपड़े उतारे गए थे। 
– यह भी साबित नहीं हुआ कि आरोपी ने पीड़िता पर यौन हमला करने का प्रयास किया था। 

क्या इन धाराओं के तहत मामला आगे बढ़ेगा?
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, हाईकोर्ट ने आईपीसी की धारा 376 और पोक्सो एक्ट की धारा 18 को हटाने का आदेश दिया है। अब आरोपी पर आईपीसी की धारा 354 (बी) और पोक्सो एक्ट की धारा 9 और 10 के तहत मामला दर्ज किया जाएगा। यह निर्णय अपराध की तैयारी और अपराध के वास्तविक प्रयास के बीच के अन्तर को स्पष्ट करता है। उच्च न्यायालय का यह निर्णय निचली अदालतों में दर्ज मामलों की गंभीरता और आरोपों की कानूनी समीक्षा के परिप्रेक्ष्य को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण साबित हो सकता है।