लगातार बढ़ता शोर न केवल हमारे कानों के लिए हानिकारक है, बल्कि यह बच्चों के दिमाग को भी नुकसान पहुंचा सकता है। हाल ही में हुए एक अध्ययन में चौंकाने वाला तथ्य सामने आया है कि यातायात और अन्य स्रोतों से होने वाला शोर बच्चों की एकाग्रता और सीखने की क्षमता को कम कर सकता है, जिससे उनकी पढ़ाई में भी समस्या आ सकती है।
यह अध्ययन जर्मनी के म्यूनिख में स्थित हेल्महोल्ट्ज़ सेंटर फॉर एनवायरनमेंटल रिसर्च के वैज्ञानिकों द्वारा किया गया है। अध्ययन में 5 से 12 वर्ष की आयु के 500 से अधिक बच्चों को शामिल किया गया था। इन बच्चों को अलग-अलग स्तर के शोर वाले वातावरण में पढ़ाई करने और कुछ कार्य पूरे करने को कहा गया। अध्ययन के नतीजों में पाया गया कि जो बच्चे अधिक शोर वाले वातावरण में थे, उन्होंने एकाग्रता और सीखने से संबंधित कार्यों में कम प्रदर्शन किया। शोर के कारण उनकी याददाश्त, ध्यान केंद्रित करने की क्षमता और समस्याओं को हल करने की क्षमता भी कमजोर हो जाती है।
शोर से तनाव
वैज्ञानिकों का कहना है कि शोर के कारण मस्तिष्क में तनाव पैदा होता है, जिससे एकाग्रता और सीखने की प्रक्रिया में बाधा आती है। शोर के कारण मस्तिष्क को अधिक मेहनत करनी पड़ती है, जिससे थकान और चिड़चिड़ापन भी बढ़ सकता है। इस अध्ययन का बच्चों के स्वास्थ्य और शिक्षा के लिए महत्वपूर्ण निहितार्थ है। यह दर्शाता है कि ध्वनि प्रदूषण न केवल कानों के लिए हानिकारक है, बल्कि यह बच्चों के मानसिक विकास पर भी नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।
क्या निदान है?
अध्ययन के आधार पर वैज्ञानिकों ने सुझाव दिया है कि स्कूलों और रिहायशी इलाकों में शोर के स्तर को कम करने के लिए कदम उठाए जाने चाहिए। साथ ही बच्चों को शोर से बचाने के लिए उन्हें घर पर भी शांत माहौल मुहैया कराया जाना चाहिए। यह अध्ययन उन अभिभावकों और शिक्षकों के लिए भी महत्वपूर्ण है जो बच्चों के विकास और शिक्षा के बारे में चिंतित हैं। उन्हें बच्चों को शोर से बचाने के लिए जरूरी कदम उठाने चाहिए और शांत माहौल मुहैया कराने की कोशिश करनी चाहिए।
Disclaimer: प्रिय पाठक, इस खबर को पढ़ने के लिए आपका धन्यवाद। यह खबर केवल आपको जागरूक करने के लिए लिखी गई है। हमने इसे लिखने में घरेलू नुस्खों और सामान्य जानकारी की मदद ली है। अगर आप कहीं भी अपनी सेहत से जुड़ी कोई बात पढ़ते हैं, तो उसे अपनाने से पहले डॉक्टर से सलाह जरूर लें।