बंबई उच्च न्यायालय: “क्या मानसिक रूप से कमजोर महिला को मां बनने का अधिकार नहीं है?”

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बंबई उच्च न्यायालय ने बुधवार को एक महत्वपूर्ण मामले में सवाल उठाया कि क्या मानसिक रूप से कमजोर मानी जाने वाली महिलाओं को मां बनने का अधिकार नहीं है। जस्टिस आर.वी. घुगे और जस्टिस राजेश पाटिल की पीठ 27 वर्षीय महिला के पिता द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिका में पिता ने 21 सप्ताह के भ्रूण को समाप्त करने की अनुमति मांगी थी, यह कहते हुए कि उनकी बेटी मानसिक रूप से अस्वस्थ और अविवाहित है।

महिला की सहमति और मेडिकल रिपोर्ट का निष्कर्ष

याचिकाकर्ता ने यह भी कहा कि उनकी बेटी गर्भावस्था को बनाए रखना चाहती है। अदालत ने पिछले सप्ताह मुंबई के सरकारी जे.जे. अस्पताल के मेडिकल बोर्ड को महिला की जांच करने का निर्देश दिया था।

मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार:

  • महिला मानसिक रूप से अस्वस्थ या बीमार नहीं है।
  • उसे केवल सीमांत बौद्धिक विकार है, जिसमें उसका आईक्यू स्तर 75 प्रतिशत है।
  • भ्रूण में कोई विसंगति नहीं है और महिला गर्भावस्था जारी रखने के लिए चिकित्सकीय रूप से फिट है।
  • हालांकि, भ्रूण को गिराने की संभावना भी रिपोर्ट में बताई गई।

अदालत की टिप्पणियां: “बुद्धि का स्तर मातृत्व के अधिकार को नहीं छीन सकता”

अदालत ने मेडिकल रिपोर्ट का संज्ञान लेते हुए कहा:

“महिला मानसिक रूप से बीमार घोषित नहीं की गई है। यह केवल बौद्धिक कार्यप्रणाली का मामला है।”

पीठ ने यह भी जोड़ा:

“सिर्फ इसलिए कि उसकी बुद्धि औसत से कम है, क्या उसे मां बनने का अधिकार नहीं है? यदि ऐसा तर्क मान लिया जाए, तो यह कानून के खिलाफ होगा। सभी व्यक्तियों की बुद्धि का स्तर भिन्न होता है।”

अभिभावक की जिम्मेदारी और सामाजिक पहलू

याचिकाकर्ता के वकील ने अदालत को बताया कि महिला ने उस व्यक्ति की पहचान कर दी है, जो उसके गर्भावस्था के लिए जिम्मेदार है। अदालत ने इस जानकारी के आधार पर महिला के अभिभावक से कहा:

“उस व्यक्ति से बातचीत करें और पता करें कि क्या वह शादी के लिए तैयार है। दोनों वयस्क हैं। यह कोई अपराध नहीं है।”

अदालत ने यह भी उल्लेख किया कि महिला को बचपन में गोद लिया गया था और अभिभावकों की जिम्मेदारी है कि वे अब भी अपना कर्तव्य निभाएं।

महत्वपूर्ण निष्कर्ष और अगली सुनवाई

अदालत ने स्पष्ट किया कि इस मामले को मानसिक विकार का नहीं माना जा सकता। साथ ही, अदालत ने महिला की सहमति को सबसे महत्वपूर्ण करार दिया।

अगली सुनवाई 13 जनवरी को तय की गई है, और अदालत ने महिला के अभिभावक को उचित बातचीत और समाधान निकालने की सलाह दी है।