महाराष्ट्र सीएम चेहरा: महाराष्ट्र में अभी तक मुख्यमंत्री का चेहरा तय नहीं हुआ है. सवाल उठ रहे हैं कि बीजेपी अकेले बहुमत के करीब है और अजित पवार भी मुख्यमंत्री की रेस से दूर हैं. हालाँकि, महायुति मुख्यमंत्री पद पर निर्णय क्यों नहीं ले सकती? माना जा रहा है कि बीजेपी आलाकमान जातीय समीकरण के आधार पर और एनडीए सहयोगियों को विश्वास में लेकर फैसला लेना चाहता है. यही वजह है कि पिछले चार दिनों से मुंबई से दिल्ली तक बैठकों का दौर चल रहा है.
एक तरफ मराठा चेहरे एकनाथ शिंदे का नाम चल रहा है तो दूसरी तरफ देवेंद्र फड़णवीस का. बीजेपी के सामने ओबीसी वर्ग को भी आकर्षित करने की चुनौती है. मौजूदा विधानसभा का कार्यकाल 26 नवंबर को समाप्त हो गया. एकनाथ शिंदे ने भी सीएम पद से इस्तीफा दे दिया है. नई सरकार बनने तक वह कार्यवाहक मुख्यमंत्री हैं. आखिर महायुति मुख्यमंत्री पर फैसला क्यों नहीं ले पाती?
बीजेपी पर्यवेक्षक पहले सहयोगी दलों और फिर विधायकों से बात करेंगे
नए सीएम पर फैसला करने से पहले बीजेपी अपने सहयोगी दलों और विधायकों से रायशुमारी करेगी. जिसमें सबसे पहले सहयोगी दलों के नेताओं से बात की जाएगी और फिर बीजेपी विधायक पार्टी की बैठक में हिस्सा लेंगे और पार्टी विधायकों से बातचीत के बाद आम सहमति बनाई जाएगी और नए मुख्यमंत्री के नाम का ऐलान किया जाएगा.
बीजेपी क्या चाहती है?
सूत्रों का कहना है कि इतनी बड़ी जीत के बाद बीजेपी कार्यकर्ता महाराष्ट्र में बीजेपी का ही मुख्यमंत्री बनाना चाहते हैं. बीजेपी का भी मानना है कि मुख्यमंत्री चुनते समय कार्यकर्ताओं की इस भावना को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए.
सूत्रों के मुताबिक, किस पार्टी का सीएम होगा, इसे तय करने में कोई विवाद नहीं है. बीजेपी की ओर से मुख्यमंत्री पद के लिए देवेन्द्र फड़णवीस प्रमुख दावेदार हैं. सूत्र यह भी बता रहे हैं कि बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व फड़णवीस के नाम पर लगभग सहमत हो गया है. लेकिन एकनाथ शिंदे और अजित पवार के सामने भी समस्या है कि किसे मंत्री पद दिया जाए.
बीजेपी किसी भी तरह के समन्वय के बिना फैसला नहीं लेना चाहती
बीजेपी नहीं चाहती कि कोई भी फैसला बिना तालमेल के हो, इसलिए पिछले चार दिनों से लगातार सहयोगी दलों से बातचीत चल रही है. अब तक की सबसे बड़ी चुनौती एकनाथ शिंदे और उनकी पार्टी शिवसेना को संतुष्ट करना है. एनसीपी पहले ही संकेत दे चुकी है कि वह फड़णवीस को अपनी पहली पसंद मान रही है.
बीजेपी को निर्णय लेने में किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है?
दो साल पहले महाराष्ट्र में हुए गजग्रह के बाद इस चुनाव में असली परीक्षा एकनाथ शिंदे और अजित पवार के गुटों की थी और दोनों ही इस परीक्षा में पास हो गए हैं. दोनों ने बंपर जीत हासिल की और अपने गढ़ों पर नियंत्रण बरकरार रखा। इन दोनों पार्टियों की अनुकूलता को बीजेपी भी अच्छे से समझती है और अब जब बीएमसी चुनाव नजदीक आ रहे हैं तो बीजेपी नहीं चाहती कि कोई नया विवाद खड़ा हो.
जब राज्य में मराठा बनाम ओबीसी आरक्षण की लड़ाई चल रही थी तब एकनाथ शिंदे और देवेंद्र फड़नवीस ने सत्ता संभाली। क्योंकि, शिंदे खुद महायुति में बड़ा मराठा चेहरा हैं. उन्होंने इन विवादों को ख़त्म करने की बहुत कोशिश की और नतीजा ये हुआ कि इस चुनाव में उन्हें भारी समर्थन मिला. इसलिए शिंदे का नाम पूरी तरह से खारिज करना आसान नहीं है।
महाराष्ट्र की राजनीति में मराठा समुदाय का दबदबा है. राज्य में अब तक 18 मुख्यमंत्रियों में से 10 मराठा हैं। इसमें एकनाथ शिंदे का नाम भी शामिल है. राज्य में कुल 288 विधानसभा और 48 लोकसभा सीटें हैं। मराठा समुदाय की 150 से ज्यादा विधानसभा सीटों और 25 लोकसभा सीटों पर मजबूत पकड़ है. जिसके चलते एकनाथ शिंदे को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.
2019 के चुनाव में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरने के बावजूद उद्धव ठाकरे के साथ गठबंधन के कारण सत्ता में नहीं आ सकी. लेकिन, ढाई साल बाद एकनाथ शिंदे ने शिवसेना में बगावत कर दी और बीजेपी से हाथ मिला लिया, जिससे एनडीए सरकार बन गई. यानी शिंदे की वजह से 2022 में महाराष्ट्र में एनडीए सरकार बनी.
इस बार बिहार मॉडल की कमान एकनाथ शिंदे ग्रुप के हाथ में है. हालांकि बिहार में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी है, लेकिन जेडीयू अध्यक्ष नीतीश कुमार वहां के सीएम हैं. 2025 के चुनाव में भी नीतीश कुमार ही एनडीए का चेहरा हैं. शिंदे गुट का यह भी तर्क है कि चुनाव शिंदे के चेहरे पर लड़ा गया और उन्होंने रिकॉर्ड जीत हासिल की.
चूंकि शिंदे का चेहरा मराठा है. बीजेपी के पास इन्हें हटाकर ओबीसी पर दांव लगाने का भी विकल्प है. लेकिन इससे मराठा वर्ग में असंतोष भी फैल सकता है. यानी संतुलन बनाए रखना भी एक चुनौती है.
देवेन्द्र फड़णवीस महाराष्ट्र बीजेपी के सबसे बड़े नेता हैं. इस चुनाव में भी बीजेपी ने फड़णवीस को मैदान में उतारा और उन्हें बड़े चेहरे के तौर पर पेश किया. क्योंकि फड़णवीस उच्च वर्ग से हैं. यानी वह ओबीसी वर्ग में फिट नहीं बैठते और बीजेपी के लिए उन्हें दरकिनार करना मुश्किल होगा, क्योंकि उनके अपने समर्थक हैं और यहां तक कि सहयोगी एनसीपी भी नहीं चाहेगी कि बीजेपी सीएम के रूप में फड़णवीस की जगह कोई नया चेहरा ले.
इस कवायद के बीच एनडीए सहयोगी और केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले का बयान भी अहम है. उन्होंने स्पष्ट किया कि चुनाव से पहले शिंदे से कोई वादा नहीं किया गया था कि वह दोबारा मुख्यमंत्री बनेंगे. इसलिए उन्हें मुख्यमंत्री पद की मांग नहीं करनी चाहिए. अगर वह डिप्टी सीएम के लिए तैयार नहीं हैं तो उन्हें दिल्ली आ जाना चाहिए. उन्हें दिल्ली में कैबिनेट मंत्री बनाया जा सकता है. अब देखना यह है कि एकनाथ शिंदे आगे कौन सी नई भूमिका निभाते हैं।