Bilateral Primary Trigeminal Neuralgia: भारत में पहली बार एक दुर्लभ बीमारी का पता चला!

किरण अवस्थी केस:  भारत में पहली बार एक दुर्लभ बीमारी का पता चला है। यह इतनी नई और अनोखी है कि भारत में पहले कभी ऐसा कोई मामला सामने नहीं आया। दुनिया भर के चिकित्सा विज्ञान साहित्य में अब तक केवल 24 मामले ही सामने आए हैं। इनमें से कोई भी भारत से नहीं था। इस अनोखी बीमारी का नाम है बाइलेटरल ट्राइजेमिनल न्यूराल्जिया। 

महाराष्ट्र में यह पहला मामला सामने आया है। मुंबई के जसलोक अस्पताल और अनुसंधान केंद्र के डॉक्टरों की एक टीम ने उन्नत न्यूरोसर्जरी के माध्यम से द्विपक्षीय ट्राइजेमिनल न्यूराल्जिया से पीड़ित 56 वर्षीय महिला का सफलतापूर्वक इलाज किया। उसके बाद अस्पताल ने एक बयान जारी कर कहा, ‘प्राइमरी द्विपक्षीय ट्राइजेमिनल न्यूराल्जिया एक बहुत ही दुर्लभ बीमारी है। इसके केवल 0.6 से 5.9 प्रतिशत मामले ही सामने आते हैं। इसमें द्विपक्षीय माइक्रोवैस्कुलर डीकंप्रेसन (एमवीडी) किया गया। नतीजतन, मरीज को दर्द से पूरी तरह राहत मिली।’

जब दर्द से तड़पता हुआ मरीज आत्महत्या के बारे में सोचने लगा…

दरअसल, इस बीमारी में महाराष्ट्र की रहने वाली किरण अवस्थी पांच साल से चेहरे के दोनों तरफ तेज झटके जैसा दर्द झेल रही थी। महिला का यह दर्द कई मिनट तक रहता था। इसके कारण उसे बात करने, खाने, दांत साफ करने और ठंडी हवा के संपर्क में आने में भी परेशानी होती थी। बीमारी का सही इलाज न होने के कारण महिला को कई उपचारों के बावजूद कोई आराम नहीं मिला। असहनीय दर्द के कारण उसके लिए रोजमर्रा के घरेलू काम करना भी मुश्किल हो गया। वह आत्महत्या के बारे में सोचने लगी।

इसके बाद, पिछले साल अक्टूबर में एमआरआई स्कैन से पता चला कि संवहनी लूप उसकी ट्राइजेमिनल नसों पर दबाव डाल रहे थे। द्विपक्षीय प्राथमिक ट्राइजेमिनल न्यूराल्जिया का निदान किया गया। जसलोक अस्पताल के न्यूरोसर्जन राघवेंद्र रामदासी ने कहा, “द्विपक्षीय ट्राइजेमिनल न्यूराल्जिया को सबसे दर्दनाक स्थितियों में से एक माना जाता है। इस दुर्लभ मामले का भारत में पहली बार द्विपक्षीय माइक्रोवैस्कुलर डिकंप्रेशन के साथ सफलतापूर्वक इलाज किया गया। पांच साल बाद मरीज को फिर से सामान्य जीवन जीते देखना हमारे लिए सबसे बड़ा इनाम है।”

 

कौन सी दवाइयां प्रभावी हैं?

कार्बामाज़ेपाइन, गैबापेंटिन, लैमोट्रीजीन और टोपिरामेट जैसी दवाएँ राहत दे सकती हैं। माइक्रोवैस्कुलर डिकम्प्रेसन अभी भी इसके लिए सबसे अच्छा इलाज है। मरीज़ का पहले बाएँ हिस्से का ऑपरेशन किया गया, फिर एक हफ़्ते बाद दाएँ हिस्से का ऑपरेशन किया गया। डॉक्टर ने कहा, ‘सर्जरी के बाद मरीज़ को दर्द से पूरी तरह राहत मिल गई। इससे उसकी ज़िंदगी सामान्य हो गई। छह महीने बाद अब वह दर्द-मुक्त ज़िंदगी जी रही है।’ 

किरण ने डॉक्टर को नई जिंदगी देने के लिए धन्यवाद देते हुए कहा कि वह मौत के मुंह से वापस आई है। असहनीय दर्द के कारण वह आत्महत्या करने के बारे में सोचने लगी थी।