Bihar Politics : जीतन राम मांझी का तीखा बयान ,आई लव मोहम्मद पर आपत्ति, धार्मिक प्रचार को बताया गलत
News India Live, Digital Desk: बिहार की राजनीति में धार्मिक नारों और आस्था से जुड़े मुद्दे अक्सर संवेदनशील बहस का कारण बनते हैं. हाल ही में 'आई लव मोहम्मद' जैसे नारों को लेकर एक नया विवाद खड़ा हो गया है. इस पर बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) के संरक्षक जीतन राम मांझी ने आपत्ति जताई है. उन्होंने इस नारे को धार्मिक प्रचार और सांप्रदायिक बताते हुए इसे प्रतिबंधित करने की मांग की है. उनका यह बयान ऐसे समय आया है जब राज्य में धार्मिक सद्भाव को लेकर राजनीतिक बहस तेज है.
जीतन राम मांझी ने स्पष्ट रूप से 'आई लव मोहम्मद' जैसे नारों को सार्वजनिक रूप से लगाना अनुचित बताया है. उन्होंने कहा कि इस तरह के नारे खुले तौर पर धार्मिक प्रचार का हिस्सा हैं और ये सांप्रदायिक सद्भाव को बिगाड़ सकते हैं. मांझी का तर्क है कि देश में किसी भी धार्मिक समूह को खुले तौर पर इस तरह के नारों का उपयोग करके अपने धर्म का प्रचार करने की अनुमति नहीं होनी चाहिए, जिससे दूसरे धर्मों के लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचे या समाज में विभाजन पैदा हो. उन्होंने इस पर प्रतिबंध लगाने की मांग करते हुए प्रशासन से कार्रवाई करने का आह्वान किया है.
जीतन राम मांझी के बयान के मायने:
- राजनीतिक संदेश: जीतन राम मांझी का यह बयान एक खास राजनीतिक संदेश देता है, जिसमें वे धर्मनिरपेक्षता और सार्वजनिक स्थानों पर धार्मिक प्रतीकों या नारों के अति प्रदर्शन पर सवाल उठा रहे हैं.
- धार्मिक सद्भाव: उनका उद्देश्य समाज में धार्मिक सद्भाव बनाए रखने की वकालत करना है, और वे मानते हैं कि ऐसे नारे इस सद्भाव को बिगाड़ते हैं.
- सरकारी हस्तक्षेप की मांग: मांझी ने इस मुद्दे पर सरकार से हस्तक्षेप की मांग की है, जिससे यह एक प्रशासनिक और कानूनी मुद्दा भी बन सकता है.
यह पहली बार नहीं है जब बिहार में इस तरह के धार्मिक नारे या मुद्दों पर बहस छिड़ी हो. राज्य में कई राजनीतिक दल धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण की कोशिशें करते रहे हैं. जीतन राम मांझी का यह बयान इस बहस को और तेज करेगा और इस बात पर विचार करने के लिए मजबूर करेगा कि सार्वजनिक स्थानों पर धार्मिक नारों और प्रतीकों का उपयोग किस हद तक होना चाहिए. अब देखना यह है कि राज्य सरकार और अन्य राजनीतिक दल इस मुद्दे पर क्या प्रतिक्रिया देते हैं.
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