Bihar Political History : बिहार का सबसे बड़ा राजनीतिक उलटफेर ,जब लालू बने किंगमेकर और नीतीश ने लगाई हैट्रिक
News India Live, Digital Desk: बिहार की राजनीति हमेशा से ही अप्रत्याशित मोड़ों और चौंकाने वाले नतीजों के लिए जानी जाती है। यहां कब कौन सा गठबंधन हावी हो जाए और कौन हाशिये पर चला जाए, यह कहना मुश्किल होता है। आज हम आपको बिहार विधानसभा के दो ऐसे ही चुनावों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिन्होंने प्रदेश की सियासत की दिशा ही बदल दी। एक चुनाव वो था जब नीतीश कुमार और बीजेपी की जोड़ी ने ऐसी आंधी लाई कि विपक्ष का लगभग सफाया हो गया, और दूसरा चुनाव वो जब धुर विरोधी रहे नीतीश और लालू ने मिलकर बीजेपी को जोरदार पटखनी दी।
2010 का वो चुनाव, जब NDA को मिली 85% सीटें
साल 2010 का बिहार विधानसभा चुनाव नीतीश कुमार के 'सुशासन बाबू' वाले दौर का शिखर था। बीजेपी के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ रही जेडीयू ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की थी। इस चुनाव में एनडीए ने 243 में से 206 सीटें जीतकर एक रिकॉर्ड बना दिया था। यह कुल सीटों का लगभग 85% था।
इस चुनाव में जेडीयू 115 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, तो वहीं बीजेपी ने भी शानदार प्रदर्शन करते हुए 91 सीटों पर जीत हासिल की थी। यह वह दौर था जब नीतीश-बीजेपी की जोड़ी को बिहार में अपराजेय माना जा रहा था।
दूसरी तरफ, लालू प्रसाद यादव की आरजेडी और कांग्रेस के लिए यह चुनाव किसी बुरे सपने जैसा था। आरजेडी अपने सबसे खराब प्रदर्शन पर सिमट गई और उसे महज 22 सीटें ही मिल सकीं। वहीं, अकेले चुनाव लड़ने वाली कांग्रेस की हालत तो और भी पतली हो गई और वह सिर्फ 4 सीटों पर सिमटकर रह गई।
2015 में बदला पासा: जब लालू-नीतीश की जोड़ी ने किया कमाल
पांच साल बाद, 2015 में बिहार की सियासत ने एक बड़ी करवट ली। बीजेपी से अलग होने के बाद नीतीश कुमार ने अपने सबसे बड़े राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी लालू प्रसाद यादव से हाथ मिला लिया। जेडीयू, आरजेडी और कांग्रेस ने मिलकर 'महागठबंधन' बनाया और बीजेपी के विजय रथ को रोकने के लिए मैदान में उतर गए।
नतीजे आए तो सब हैरान रह गए। इस महागठबंधन ने बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए को करारी शिकस्त देते हुए 243 में से 178 सीटों पर प्रचंड जीत हासिल की। इस चुनाव में लालू प्रसाद यादव की आरजेडी 80 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी। नीतीश कुमार की जेडीयू को 71 सीटें मिलीं, जबकि कांग्रेस ने भी मौके का फायदा उठाते हुए 27 सीटों पर कब्जा जमा लिया।
वहीं, 2010 में 91 सीटें जीतने वाली बीजेपी इस चुनाव में महज 53 सीटों पर सिमट गई। यह चुनाव इस बात का सबूत था कि बिहार में सही सामाजिक समीकरण और गठबंधन किसी भी लहर को पलट सकता है।
ये दोनों चुनाव बिहार की राजनीति के दो अलग-अलग अध्यायों की तरह हैं, जो दिखाते हैं कि यहां की जनता ने कभी एकतरफा विकास के नाम पर वोट दिया, तो कभी सामाजिक समीकरणों के आधार पर मजबूत गठबंधन को चुना। ये नतीजे आज भी राजनीतिक विश्लेषकों के लिए एक केस स्टडी की तरह हैं।
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