Bihar Political Analysis : लालू युग खत्म, बिहार का असली हीरो तो , प्रशांत किशोर ने खोल दिए सारे पत्ते

Post

News India Live, Digital Desk: बिहार की राजनीति में हमेशा हलचल मची रहती है, लेकिन इन दिनों चुनावी रणनीतिकार से नेता बने प्रशांत किशोर (पीके) ने अपने बयानों से एक नया तूफान खड़ा कर दिया है। अपनी 'जन सुराज' पदयात्रा के दौरान पीके ने बिहार की राजनीति का एक ऐसा विश्लेषण किया है, जो लालू प्रसाद यादव के समर्थकों को शायद पसंद न आए, लेकिन जिसने एक नई बहस को जन्म दे दिया है।

प्रशांत किशोर ने पूरी ताक़त के साथ यह ऐलान किया है कि बिहार में अब "लालू-राबड़ी युग" पूरी तरह से ख़त्म हो चुका है।

वो 70% मंत्री जो चुनाव हार गए...

पीके ने सिर्फ हवा में बात नहीं की, बल्कि अपनी बात को साबित करने के लिए एक चौंकाने वाला आंकड़ा भी सामने रखा। उन्होंने कहा, "आप रिकॉर्ड उठाकर देख लीजिए, 2005 के बाद से लालू-राबड़ी के राज में जो भी मंत्री, विधायक या बड़े नेता थे, उनमें से 70 प्रतिशत लोग चुनाव हार गए।"

उनका कहना है कि बिहार की जनता ने उस 15 साल के शासनकाल को पूरी तरह से नकार दिया है। लोग अब उस दौर में वापस नहीं जाना चाहते, और यही आज की सबसे बड़ी सच्चाई है।

तो फिर RJD कैसे जीतती है चुनाव?

अब सवाल यह उठता है कि अगर लालू युग ख़त्म हो गया है, तो RJD आज भी एक बड़ी राजनीतिक ताकत कैसे बनी हुई है? इस पर प्रशांत किशोर ने RJD की दुखती रग पर हाथ रख दिया।

उनका कहना है, "आज RJD लालू जी के नाम पर चुनाव नहीं जीतती, बल्कि वो अपने मज़बूत 'एम-वाई' (मुस्लिम-यादव) समीकरण के दम पर जीतती है। ये वो वोट बैंक है जो हर हाल में लालू परिवार के साथ खड़ा रहता है, चाहे कुछ भी हो जाए।" पीके ने इशारों-इशारों में कहा कि लालू जी का व्यक्तिगत करिश्मा अब वोटों में तब्दील नहीं होता।

"लालू नहीं, नीतीश हैं बिहार के असली हीरो"

प्रशांत किशोर ने इससे भी आगे बढ़कर एक और बड़ी बात कह दी। उन्होंने कहा कि बिहार की राजनीति का असली हीरो लालू प्रसाद नहीं, बल्कि नीतीश कुमार हैं।

उन्होंने तर्क दिया, "जिसने 15 साल के 'जंगलराज' को खत्म किया, जिसने बिहार को उस दौर से बाहर निकाला, असली हीरो तो वही है। रावण का राज खत्म करने वाले राम को याद किया जाता है, रावण को नहीं।" उनका मानना है कि बिहार की पूरी राजनीति आज भी नीतीश कुमार के इर्द-गिर्द ही घूमती है, चाहे कोई उनकी हिमायत करे या मुखालफत।

साफ है कि प्रशांत किशोर 2025 के विधानसभा चुनाव से पहले बिहार में एक नई सियासी कहानी लिखने की कोशिश कर रहे हैं। वह जनता को यह बताना चाहते हैं कि अब पुराने नामों पर नहीं, बल्कि नए विचारों और नए विकल्प पर गौर करने का वक्त आ गया है। अब देखना यह होगा कि पीके का यह दांव बिहार की सियासत को किस दिशा में ले जाता है।

--Advertisement--