अमेरिका ने बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन करने के लिए क्या-क्या किया, यह किसी से छिपा नहीं रहा है। भारत में सत्ता बदलने के लिए जॉर्ज सोरोस (अमेरिकी निवेशक, उद्योगपति) एवं अन्य क्या षड्यंत्र रच रहे थे यह भी अब सभी के सामने आ चुका है। इसमें भारत की विपक्षी पार्टी कांग्रेस और उसके नेता राहुल गांधी की भागीदारी कितनी रही है, यह भी आज सभी जानते हैं, इसमें गौतम अडानी को पहले और अब कैसे जोड़ा जा रहा है, और ऐसा करने से नुकसान किसका हुआ या हो रहा है, वह भी आज हमारे सामने है। वास्तव में जिस तरह से पहले और आज भारतीय उद्योगपति अडानी पर अमेरिका से निशाना साधा जा रहा है, यह बहुत गहराई से समझने की आवश्यकता हर भारतीय को है। एक तरह से देखा जाए तो यह हमला सिर्फ अडानी किसी एक उद्योगपति पर नहीं बल्कि भारतीय अर्थव्यवस्था की सुदृढ़ होते सिस्टम को कमजोर करने का प्रयास है। यहां यह सहज विचार किया जा सकता है कि अडानी के कमजोर होने से सबसे अधिक लाभ किसे होगा? दुनिया के सबसे अधिक अमीर अरबपतियों की सूची में किस देश के लोग हैं? इसका उत्तर है अमेरिका और चीन । दोनों ही देशों में लगभग बराबर से अरबपति लोगों की संख्या है, स्वभाविक है कि आर्थिक स्तर पर सबसे ज्यादा प्रतिस्पर्धा भी इन्हीं दो देशों में दिखाई देती है, पीछे से पिछले कुछ सालों में केंद्र में मोदी सरकार आने के बाद से भारत में भी अरबपतियों की संख्या में तेजी से इजाफा हो रहा है।
हुरुन ग्लोबल रिच लिस्ट 2024 के आंकड़े हमारे सामने हैं, जिसके अनुसार मुंबई 92 अरबपतियों के साथ दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ने वाली अरबपतियों की राजधानी बन गई, यह अब एशिया की अरबपतियों की राजधानी के रूप में बीजिंग से आगे निकल गई है। भारत में 2023 में 94 नए अरबपति जुड़े, जो अमेरिका के बाद दूसरे स्थान पर हैं, जिससे कुल 271 व्यक्तियों की कुल संपत्ति कम से कम एक बिलियन अमरीकी डॉलर हो गई। वस्तुत: यह रिपोर्ट हाल के दिनों में भारत की बढ़ती आर्थिक गति को दर्शाती है। सामूहिक रूप से, इन भारतीय अरबपतियों के पास एक ट्रिलियन अमरीकी डॉलर की संपत्ति है, जो कुल वैश्विक अरबपतियों की संपत्ति का सात प्रतिशत है, जोकि आज भारत के महत्वपूर्ण आर्थिक प्रभाव को रेखांकित करता है। दूसरी ओर भारत के वे बड़े उद्योगपति हैं, जिनके कारण आर्थिक क्षेत्र में भारत की वैश्विक पहचान ही नहीं बल्कि नए नवाचार एवं करोड़पति-अरबपति उद्योग जगत के लोग इनका अनुसरण करते हुए सतत अपने-अपने क्षेत्रों में सफल होने के प्रयास कर रहे हैं, उनमें टाटाग्रुप, अंबानी-रिलायंस इंडस्ट्रीज, अडानी ग्रुप, जिंदल ग्रुप- जेएसडब्ल्यू ग्रुप, शिव नादर- एचसीएल टेक्नोलॉजीज, दिलीप सांघवी- सन फार्मास्युटिकल इंडस्ट्रीज लिमिटेड, बिड़ला ग्रुप, सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया, हिंदुजा फैमिली, रवि जयपुरिया, लक्ष्मी मित्तल, सुधीर एंड समीर मेहता, मधुकर पारेख एंड फैमिली, उदय कोटक, अजीम प्रेमजी, मंगल प्रभात लोढ़ा, गोदरेज, बर्मन फैमिली, पंकज पटेल, कपिल एंड राहुल भाटिया, मुरुगप्पा फैमिली, विनोद एंड अनिल राय गुप्ता, रेखा झुनझुनवाला, मुरली देवी फैमिली और विक्रम लाल फैमिली समेत कई नाम शामिल हैं। जिसमें कि गौतम अडानी और मुकेश अंबानी कभी एक या दो पर बने रहते हैं ।
अमेरिका के संदर्भ में यहां कहना होगा कि राष्ट्रपति जो बाइडेन और कमला हैरिस की टीम चाहकर भी जब भारत में प्रधानमंत्री मोदी को सत्ता से नहीं हटा पाए, जैसा कि उनका अनुमान बांग्लादेश, श्रीलंका सत्ता के परिवर्तन की तरह रहा होगा, तब वे सत्ता से जाते-जाते अमेरिका के नए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के लिए अनेक विवाद और मुसीबतें खड़ी कर देना चाहते हैं। इनसे जुड़े उद्योगपतियों का भी दबाव भी इस तरह के आरोपों और भारतीय उद्योगपति पर की जा रही इस कार्रवाई से साफ नजर आता है। वे दुनिया में भारत को आर्थिक रूप से शक्तिशाली होने से हर हाल में रोक देना चाहते हैं। अडानी इनके आसान शिकार इसलिए बनाए जा रहे हैं, क्योंकि वे प्रमुखता से दुनिया भर में विस्तार कर रहे हैं, इसलिए उनकी निगाहें बार-बार गौतम अडानी पर जाकर टिक जा रही हैं। आज अडानी हर मौके को अंतिम अवसर मानकर अमेरिका एवं अन्य देशों के अरबपतियों और खबरपतियों को चुनौती दे रहे हैं। ये अलग बात है कि अब तक उन पर जितने भी आरोप लगाए गए, हर बार आरोप गलत साबित हुए, किंतु इन आरोपों से तत्काल में जो भारतीय बाजार में अविश्वास पैदा होता है और निवेशकों का करोड़ों रुपया डूब जाता है, वह बहुत चिंता पैदा करता है।
इससे पहले हमने देखा ही है कि जब साल 2022 में गौतम अडानी 150 अरब डॉलर के साथ दुनिया के तीसरे सबसे अमीर कारोबारी बन गए थे, तब उन्हें नीचे गिराने के कैसे षड्यंत्र शुरू हो गए थे। पिछले साल की शुरुआत में जनवरी में उन पर अमेरिकी शॉर्ट सेलर हिंडनबर्ग रिसर्च ने गंभीर आरोप लगाए। ये एक बार नहीं कुछ वक्त के साथ दो बार लगाए गए, स्वभाविक तौर पर इसका बाजार में असर हुआ, पहले अधिक हुआ और इस रिपोर्ट के बाद अडानी ग्रुप को 150 बिलियन डॉलर से ज्यादा का नुकसान हुआ था। बाद में फिर जब ऐसे ही आरोप हिंडनबर्ग रिसर्च ने लगाए तो बाजार ने इसे गंभीरता से नहीं लिया। अमेरिका के कई उद्योग जगत के लोग जो सोच रहे थे, वह हो नहीं सका। जांच में अडानी ग्रुप पर लगे सभी आरोप निराधार पाए गए।
वस्तुत: अब यह तीसरा लगातार का प्रयास है अडानी ग्रुप के जरिए भारतीय अर्थव्यवस्था पर चोट करने का। इस बार अमेरिकन जो वाइडेन प्रशासन सरकारी सिस्टम के साथ उनके विरोध में सामने आया है। स्वभाविक है सरकार का असर हुआ है और पिछले दो दिनों में अडानी ग्रुप के सभी शेयर नीचे आ गए हैं। आप इसमें षड्यंत्र का अंदाजा इससे लगा सकते हैं कि हाल ही में अमेरिकी चुनाव में डोनाल्ड ट्रम्प की जीत के तुरंत बाद, अडानी ने एक्स पर उन्हें जीत की बधाई दी और लिखा कि उनका ग्रुप अमेरिकी एनर्जी और इंफ्रा प्रोजेक्ट्स में 10 बिलियन डॉलर का निवेश करेगा, जिससे अमेरिका में 15,000 जॉब जेनरेट होने की संभावना होगी। यानी जिस एनर्जी और इंफ्रा प्रोजेक्ट्स को लेकर वह अमेरिका में अपने उद्योग को विस्तार देनेवाले थे, उसी क्षेत्र में उन पर ये आरोप लगाए गए हैं ताकि उन्हें अमेरिका में अपने उद्योग को विस्तार देने से रोका जा सके।
अमेरिका जो वाइडेन प्रशासन एवं उनसे जुड़े उद्योगपतियों पर शक इसलिए भी होता है क्योंकि जब पिछली बार अडानी एंटरप्राइजेज का एफपीओ आने वाला था, तभी यह हिंडेनबर्ग रिपोर्ट सामने आई थी, कंपनी 600 मिलियन डॉलर जुटाने वाली थी। वस्तुत: इसके जरिए अडानी इंटरप्राइजेज 20,000 करोड़ रुपए जुटा भी लिए गए थे, किंतु बाजार के विश्वास बनाए रखने के लिए कंपनी ने सभी निवेशकों को उनका रुपया लौटा दिया था। अपने मजबूत इरादों और विश्वास के जरिए गौतम अडानी फिर से निवेशकों का भरोसा जीतने में सफल रहे। श्रीलंका पोर्ट प्रोजेक्ट जैसे कई देशों में चल रहे प्रोजेक्ट हैं, जिनमें अमेरिकन निवेश है, लेकिन इनमें किसी न किसी तरह आज अडानी ग्रुप की इंट्री भी हो गई है। इससे भी कहीं न कहीं कई अमेरिकन निवेशकों एवं उद्योगपतियों की नींद उड़ी हुई है। पिछले कुछ सालों में देखने में आ रहा है कि जिस भी प्रोजेक्ट को अडानी ग्रुप अपने हाथ में ले रहा है भले ही कल तक वह मिट्टी रहा है, लेकिन अचानक से वह सोना हो जा रहा है। निश्चित ही इससे भी कई बड़े लोग परेशान हैं।
फिलहाल जो देखने को मिलेगा वह यही है कि पूर्व की तरह अडानी ग्रुप इस बार भी चुप नहीं बैठेगा, वह सभी कानूनी उपाय अपने को निर्दोष साबित करने के लिए करेगा । अमेरिका के लिए भी आसान नहीं है उस पर आरोप सिद्ध करना, जैसा कि अभी अडानी ग्रुप की तरफ से कहा भी गया है कि “अडानी ग्रीन के निदेशकों के खिलाफ यू.एस. न्याय विभाग और यू.एस. प्रतिभूति और विनिमय आयोग द्वारा लगाए गए आरोप निराधार हैं और उनका खंडन किया गया है।..जैसा कि अमेरिकी न्याय विभाग ने खुद कहा है, ‘अभियोग में लगाए गए आरोप अभी सिर्फ आरोप हैं और जब तक दोष साबित नहीं हो जाते, तब तक प्रतिवादियों को निर्दोष माना जाता है।’ ऐसे में हमारी ओर से सभी संभव कानूनी उपाय किए जाएंगे।” पर यहां कुछ समय के लिए ही सही वास्तव में अमेरिका प्रशासन अपने यहां अडानी ग्रुप की उड़ान को रोकने में कामयाब होता दिखता है, क्योंकि इन आरोपों के बीच, अडानी ग्रीन एनर्जी ने स्टॉक एक्सचेंजों को यह भी सूचित कर दिया है कि उसकी सहायक कंपनियों ने अपनी नियोजित अमेरिकी डॉलर-मूल्यवान बॉन्ड पेशकश को स्थगित करने का फैसला किया है। आगे अभी 19 जनवरी 2025 तक अमेरिका में बाइडेन सरकार ही रहेगी, ऐसे में हो सकता है कि भारत की आर्थिक गति को कमजोर करने के लिए अमेरिका या उसके प्रभाव वाले देशों से और भी कोई नया षड्यंत्र सामने आ जाए!
ऐसे में कहना यही होगा कि अभी जो भी आर्थिक आक्रमण भारत पर प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष हो रहे हैं, उनमें कहीं न कहीं अमेरिका जो वाइडेन प्रशासन की भूमिका दिखाई दे रही है। इसे भारत की अर्थव्यवस्था पर हमला इसलिए मान सकते हैं, क्योंकि भारतीय उद्योगपति मजबूत होते हैं जो भारत में अधिक रोजगार पैदा होते हैं, भारतवासी दूसरे देशों के लोगों को रोजगार देने में सक्षम होते हैं जोकि अमेरिका के कुछ बड़े उद्योगपति होते हुए नहीं देखना चाहते, फिर बाइडेन प्रशासन का साथ भी उन्हें मिला हुआ है, इसलिए इन दिनों बाइडेन प्रशासन में भारतीय उद्योगपतियों को आए दिन किसी न किसी बहाने उलझाने एवं उन पर प्रश्न खड़े करने का प्रयास होता हुआ दिखता है। कुल उद्देश्य भारत की आर्थिक गति को धीमा करना है।