नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने जमानत को लेकर अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि अगर कोई व्यक्ति मंत्री है तो उसकी जमानत के लिए कोई विशेष सुविधा नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी बंगाल के पूर्व मंत्री पार्थ चटर्जी की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए की. और पार्थ चटर्जी की उन दलीलों को खारिज कर दिया कि वह खुद मंत्री रह चुके हैं. हालांकि, उनकी जमानत को लेकर समय सीमा भी तय की गई थी.
सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ के समक्ष पूर्व मंत्री पार्थ चटर्जी के वकील ने तर्क दिया कि उनकी जमानत याचिका पर अलग से विचार किया जाना चाहिए क्योंकि याचिकाकर्ता मंत्री के रूप में कार्यरत रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इसे खारिज करते हुए कहा कि मामले की स्थिति को देखते हुए ही इस पर विचार किया जा सकता है, मंत्री होने के नाते जमानत पर विचार के लिए कोई विशेष रियायत नहीं मिलती है.
सुप्रीम कोर्ट ने नौकरी के बदले नौकरी घोटाले में मनी लॉन्ड्रिंग मामले में गिरफ्तार पार्थ चटर्जी की जमानत पर समय सीमा तय की, साथ ही ट्रायल कोर्ट से इसे जल्द निपटाने को कहा। पीठ ने कहा कि अगर मामले की सुनवाई तेजी से हो और गवाहों से ठीक से पूछताछ हो तो पार्थ चटर्जी को 1 फरवरी 2025 तक जमानत दी जा सकती है. सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि अगर ट्रायल कोर्ट 30 जनवरी तक आरोप तय कर ले और गवाहों से पूछताछ कर ले तो उन्हें 1 फरवरी को रिहा किया जा सकता है.