वेद अध्ययन से पूर्व छात्रों का हुआ सामूहिक उपनयन संस्कार

प्रयागराज, 08 जुलाई (हि.स.)। झूंसी स्थित श्री स्वामी नरोत्तमानंद गिरि वेद विद्यालय, परमानंद आश्रम ट्रस्ट परिसर के श्रीलक्ष्मी नारायण मंदिर में आज वेद अध्ययन के लिए नव प्रवेशित छात्रों का सामूहिक उपनयन संस्कार हुआ। इसके उपरान्त महानिर्वाणी अखाड़े की महामण्डलेश्वर श्री 1008 गीता भारती माता से आशीर्वाद प्राप्त किया।

विद्यालय के प्राचार्य ब्रजमोहन पांडेय ने कहा कि त्रैवर्णिक के मुख्य संस्कारों में सर्वप्रथम संस्कार ‘उपनयन’ है। यह होने पर ही त्रैवर्णिक बालक द्विज कहलाता है। शास्त्रों का मानना है कि इस संस्कार से ही बालक का विशुद्ध ज्ञानमय जन्म होता है। इस ज्ञानमय जन्म के पिता आचार्य तथा माता गायत्री हैं। यज्ञोपवीत (यज्ञ$उपवित) का अर्थ है ब्रह्म (ईश्वर) ज्ञान के पास ले जाना। उन्होंने कहा शास्त्रों में संस्कारों की संख्या तो बहुत है, फिर भी विद्वान प्रमुख रूप से 16 संस्कारों को मानते हैं। इनमें से एक संस्कार ‘उपनयन’ संस्कार है। इसमें विधि पूर्वक विद्यारम्भ कराया जाता है। तीन सूत्रों वाले यज्ञोपवीत को गुरु मंत्र धारण करने के पश्चात शिष्य धारित करता है। तीनों सूत्र ब्रह्मा, विष्णु, महेश का प्रतीक है।

कार्यक्रम का संयोजन शिवानंद द्विवेदी ने किया। छात्रों के अभिभावकों की मौजूदगी में वेद विद्यालय के विद्वान आचार्यगणों द्वारा सम्पन्न उपनयन संस्कार कराया गया। यज्ञोपवीत धारण करने के पश्चात ही छात्र वेदाध्ययन कर सकता है। इस दौरान विधिपूर्वक भंडारे-प्रसाद का वितरण किया गया। इस अवसर पर वरिष्ठ आचार्य खिमलाल न्योपाने जीवन उपाध्याय, गौरव जोशी, कृष्ण कुमार मिश्र, अवनी सिंह, अंजनी कुमार सिंह, महामंडलेश्वर के अनेक शिष्य, छात्रों के अभिभावक, आश्रमवासी एवं स्थानीय लोग मौजूद रहे।