अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ से जुड़े विधेयक पर संसदीय समिति के समक्ष बयान दिया। उन्होंने स्पष्ट किया कि यह प्रस्ताव संविधान के किसी भी प्रावधान का उल्लंघन नहीं करता और कानूनी दृष्टि से पूरी तरह वैध है। सूत्रों के अनुसार, संसदीय समिति के समक्ष पेश हुए कुछ कानूनी विशेषज्ञों ने विधेयक के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की और कुछ चिंताओं को साझा किया। हालांकि, वेंकटरमणी ने जोर देकर कहा कि विधेयकों में किसी संशोधन की आवश्यकता नहीं है।
विपक्ष का विरोध और प्रियंका गांधी के सवाल
विपक्षी दलों ने इस विधेयक को संविधान के खिलाफ बताया है। दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश डी.एन. पटेल, जो वर्तमान में दूरसंचार विवाद निपटान और अपीलीय न्यायाधिकरण (TDSAT) के अध्यक्ष हैं, ने समिति के समक्ष ‘एक साथ चुनाव’ की सकारात्मक और चुनौतियों से जुड़ी बातों पर चर्चा की।
उन्होंने बताया कि यह विचार राष्ट्र के लिए फायदेमंद हो सकता है, हालांकि किसी भी प्रस्तावित कानून में सुधार की गुंजाइश हमेशा बनी रहती है। जब पटेल ने दुनिया के अन्य देशों में एक साथ चुनाव कराने की परंपरा का हवाला दिया, तो कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वाड्रा ने सवाल उठाया। उन्होंने पूछा कि क्या स्वीडन और बेल्जियम जैसे देशों की तुलना भारत से की जा सकती है?
‘एक साथ चुनाव’ पर अध्ययन का अभाव?
प्रियंका गांधी ने कहा कि एक साथ चुनाव कराने के लाभ केवल अनुमानित हैं, क्योंकि इस पर कोई ठोस अध्ययन नहीं किया गया है।
सूत्रों के मुताबिक, वेंकटरमणी ने सदस्यों को यह भी स्पष्ट किया कि वह भारत के अटॉर्नी जनरल हैं, न कि सरकार के पक्षधर। उन्होंने यह टिप्पणी इस धारणा को दूर करने के लिए की कि वह केवल सरकार के समर्थन में बोल रहे हैं।
समिति की प्रतिक्रिया
संसदीय समिति के अध्यक्ष और भाजपा सांसद पी.पी. चौधरी ने कहा कि ‘एक साथ चुनाव’ देश के हित में है। समिति इसे लागू करने के सर्वोत्तम तरीकों पर विचार कर रही है।
क्या होगा अगला कदम?
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि संसदीय समिति अपनी रिपोर्ट में क्या सिफारिशें देती है और सरकार इस विधेयक को आगे कैसे बढ़ाती है।