समुद्र में पाया जाने वाला मोती जितना सुन्दर होता है उतना ही शक्तिशाली भी होता है। यह चन्द्र रत्न है। इसे धारण करने वाले व्यक्ति की कुंडली में चंद्रमा मजबूत हो जाता है। चंद्रमा को मन, भावनाओं और मातृत्व का स्वामी माना जाता है। इसी कारण मोती पहनने से व्यक्ति तनाव मुक्त रहता है तथा उसके जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मोती हर किसी के लिए शुभ नहीं होता। ऐसा माना जाता है कि मोती का संबंध चंद्रमा से है। इस कारण इसे पहनते समय कुंडली में चंद्रमा की स्थिति का विशेष ध्यान रखना चाहिए। यदि मोती को सही तरीके से पहना जाए तो जीवन सफल हो जाता है। इसके अलावा, अगर इसे बिना सोचे समझे पहना जाए तो यह जीवन को नरक बना सकता है।
इन लोगों को मोती नहीं पहनना चाहिए।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार अत्यधिक भावुक और क्रोधी व्यक्ति को कभी भी मोती नहीं पहनना चाहिए।
जिनकी राशि वृषभ, मिथुन, कन्या, मकर या कुंभ है उन्हें भी मोती पहनने से बचना चाहिए। क्योंकि इस राशि के स्वामी ग्रह चंद्रमा से शत्रुता रखते हैं।
जिन लोगों की राशि शुक्र, बुध और शनि द्वारा शासित होती है, उन्हें भी मोती नहीं पहनना चाहिए।
मोती को कभी भी हीरे, नीलम और गोमेद के साथ नहीं पहनना चाहिए। मोती को पीले पुखराज और मूंगा के साथ पहना जा सकता है।
इन लोगों को लाभ होता है।
मेष, कर्क, वृश्चिक और मीन राशि के लोगों के लिए मोती पहनना लाभदायक होता है। धनु, सिंह और तुला राशि के लोगों को विशेष परिस्थितियों में ही मोती पहनने की सलाह दी जाती है।
इन स्थितियों में पहनें
यदि आपकी राशि में चंद्रमा उच्च या नीच राशि जैसे वृश्चिक में हो तो मोती पहनें।
चन्द्रमा की महादशा में मोती अवश्य पहनें।
यदि चंद्रमा राहु या केतु के साथ युति में हो तो भी आपके लिए मोती पहनना शुभ रहेगा।
यदि चंद्रमा उच्च राशि में होकर पाप ग्रहों से दृष्ट हो रहा हो तो भी मोती पहनें।
यदि कुंडली में चंद्रमा 6वें, 8वें और 12वें भाव में हो तो भी आपको मोती पहनना चाहिए।
यदि चंद्रमा कमजोर हो या सूर्य के साथ युति में हो तो मोती आपके लिए शुभ रहेगा।
यदि चंद्रमा कमजोर है और आपका जन्म कृष्ण पक्ष में हुआ है तो मोती पहनें।
मोती पहनते समय सावधान रहें।
मोती केवल चांदी की अंगूठी में ही पहनें। इस अंगूठी को शुक्ल पक्ष के किसी भी सोमवार की रात को अपनी कनिष्ठिका उंगली में पहनें। आप इसे पूर्णिमा के दिन भी पहन सकते हैं। इसे पहनने से पहले इसे गंगाजल से धोकर भगवान शिव पर चढ़ाएं। इसके बाद ही इसे पहनें।