Another step towards a new malaria vaccine: ICMR ने बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए कंपनियों को बुलाया

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News India live, Digital Desk : Another step towards a new malaria vaccine:  मलेरिया, एक ऐसी गंभीर बीमारी जो हर साल लाखों लोगों को प्रभावित करती है, खासकर भारत में। इससे लड़ने के लिए हमारा देश लंबे समय से कोशिशें कर रहा है। इसी कड़ी में, भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) ने अब एक बेहद महत्वपूर्ण कदम उठाया है। उन्होंने एक उन्नत (एडवांस) मलेरिया वैक्सीन के बड़े पैमाने पर उत्पादन और व्यावसायिक रूप से इसे बाजार में लाने के लिए कंपनियों और फार्मा उद्योगों से आवेदन मांगे हैं।

कौन सी है ये वैक्सीन?
यह वैक्सीन प्लास्मोडियम फाल्सीपेरम (Plasmodium falciparum) नाम के मलेरिया परजीवी पर आधारित है। यही परजीवी दुनिया भर में मलेरिया के सबसे गंभीर और जानलेवा मामलों का कारण बनता है। यह एक 'सिंथेटिक वैक्सीन कैंडिडेट' है, यानी इसे प्रयोगशाला में विशेष रूप से एक खास कोड (26 अमीनो एसिड सीक्वेंस) का उपयोग करके तैयार किया गया है। इसका मतलब है कि यह टीका कृत्रिम रूप से विकसित किया गया है ताकि परजीवी के खिलाफ मजबूत प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया मिल सके।

अब तक क्या हुआ है?
ICMR का कहना है कि इस वैक्सीन ने जानवरों पर किए गए शुरुआती टेस्ट (प्रीक्लिनिकल स्टडीज) में बहुत अच्छे और उत्साहजनक नतीजे दिखाए हैं। ये शुरुआती जांचें बताती हैं कि वैक्सीन सुरक्षित और प्रभावी है। यह एक बड़ी सफलता है, क्योंकि प्रीक्लिनिकल स्टडीज किसी भी वैक्सीन के इंसानों पर परीक्षण से पहले का एक अनिवार्य कदम होता है।

आगे क्या होगा?
प्रीक्लिनिकल सफलता के बाद, अब असली चुनौती है इस वैक्सीन को इंसानों पर बड़े स्तर पर टेस्ट करना और फिर उसका उत्पादन करना। ICMR ने जिन कंपनियों से आवेदन मांगे हैं, उनसे उम्मीद की जाती है कि वे ये काम करेंगे:

ICMR इस परियोजना के लिए "साझा विकास" मॉडल पर काम करेगा। इसका मतलब है कि ICMR वैक्सीन तकनीक का अपना ज्ञान और पेटेंट अधिकार चयनित कंपनी के साथ साझा करेगा।

भारत और दुनिया के लिए इसका क्या महत्व है?
यह कदम दिखाता है कि भारत स्वास्थ्य क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की दिशा में कितना आगे बढ़ रहा है। एक स्वदेशी और प्रभावी मलेरिया वैक्सीन विकसित करना देश के लिए गेम चेंजर साबित हो सकता है। यदि यह वैक्सीन सफल होती है, तो यह न केवल भारत में मलेरिया को खत्म करने के 2030 के लक्ष्य को पाने में मदद करेगी, बल्कि विश्व स्तर पर भी मलेरिया से जूझ रहे विकासशील देशों के लिए एक किफायती और सुलभ समाधान प्रदान कर सकती है।

यह भारत के वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं की कड़ी मेहनत का नतीजा है और इससे मलेरिया मुक्त भविष्य की आशा मजबूत होती है।

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