विधानसभा में फिर गूंजा उदयपुर का भूखण्ड घोटाला, जांच की घोषणा

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उदयपुर, 2 अगस्त (हि.स.)। उदयपुर में भूखण्ड घोटाले का मामले में नगरीय विकास एवं स्वायत्त शासन मंत्री झाबर सिंह खर्रा ने नगर विकास विभाग द्वारा 10 दिन में तत्कालीन आयुक्त के खिलाफ 10 दिन में आरोप पत्र तैयार कर कार्मिक विभाग को भेजने के निर्देश दिए हैं। साथ ही कार्मिक विभाग ने 15 दिन में इस आरोप पत्र का परीक्षण कर संबंधित अधिकारी को आरोप पत्र भेजकर स्पष्टीकरण मांगेगा। इसके बाद कार्मिक विभाग कार्रवाई के लिए मुख्य सचिव को प्रस्ताव भेजने और मुख्य सचिव द्वारा मुख्यमंत्री को जानकारी देकर संबंधित अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई करवाने के निर्देश जारी किए हैं।

विधानसभा में उदयपुर विधायक ताराचंद जैन ने उदयपुर नगर विकास प्रन्यास से उदयपुर नगर निगम को हस्तांतरित की गई कॉलोनियों में 272 भूखण्डों के घोटाले का मुद्दा उठाया था। इस पर नगरीय विकास और स्वायत्त शासन मंत्री झाबर सिंह खर्रा ने इस पर जवाब देते हुए बताया कि 2004 से यूआईटी ने नगर निगम को 30 योजनाएं और 16 कच्ची बस्तियां हस्तान्तरित की है। योजनाओं में 6046 भूखण्ड और कच्ची बस्तियों 4363 पत्रावलियां दी है। योजनाओं में इसमें 2051 नामान्तरण और 9 पट्टे जारी किए है। बस्तियों में 7 नामान्तरण और 935 पट्टे जारी किए है। 34 भूखण्डों की नीलामी से 11 करोड़ रुपए की आय हुई है। कुछ प्लॉट को यूआईटी ने आवंटन जारी किए थे पर आवंटी द्वारा राशि जमा नहीं करवाने से इनका आवंटन निरस्त हो गया। शिकायत पर नगर निगम उदयपुर के महापौर 28 दिसम्बर 2021 को जांच समिति का गठन किया गया। इसमें तीन अधिकारी और तीन जनप्रतिनिधि शामिल हुए। इसकी जांच रिपोर्ट में 316 पत्रवालियों का उल्लेख नहीं है और 40 संदिग्ध भूखण्ड बताए हैं। जांच में एक सहायक प्रशासनिक अधिकारी और तीन वरिष्ठ सहायकों के दोषी पाए जाने पर उन्हें आरोप पत्र जारी किए हैं।

मंत्री खर्रा ने बताया कि इसके मामले में सूरजपोल और हिरणमगरी थाने में दर्ज है। बाद में यह जांच वर्ष 2021 को एसओजी जोधपुर को दी गई और वर्ष 2023 में उदयपुर एसओजी और वर्तमान में यह जांच अजमेर एसओजी के पास है और अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक एसओजी नगर निगम के तत्कालीन आयुक्त और दोषी कार्मिकों के खिलाफ कार्रवाई करेंगे। साथ ही संदिग्ध भूखण्डों को वापस लेने की कार्रवाई की जाएगी। नगरीय विकास और स्वायत्त शासन मंत्री झाबर सिंह खर्रा ने बताया कि जब इस ध्यानाकर्षण प्रस्ताव का जवाब लेकर अधिकारी आए तो पता चला कि इसमें गंभीर अनियमितताएं हुई है। वास्तविक दोषी के खिलाफ कार्रवाई ना कर छोटे कर्मचारियों के खिलाफ ही कार्यवाही की गई। मंत्री ने कहा कि यह करोड़ों का घोटाला है और जिन पत्रवालियों में पट्टे जारी किए वो सारे कूटरचित थे। यूआईटी की पत्रावली में फर्जी रसीदें लगी थी। मंत्री खर्रा ने कहा कि भूखण्डों को पुनः प्राधिकरण के कब्जे में लेकर नीलामी करवाकर पता लगाएंगे कि आखिरकार कितने करोड़ का गबन हुआ है।

नगरीय विकास और स्वायत्त शासन मंत्री झाबर सिंह खर्रा ने विधानसभा में घोषणा की है कि इस प्रकरण में तत्कालीन आयुक्त के खिलाफ नगरीय विकास विभाग 10 दिन में आरोप पत्र तैयार कर कार्मिक विभाग को भेजेंगे। साथ ही कार्मिक विभाग ने 15 दिन में इस आरोप पत्र का परीक्षण कर संबंधित अधिकारी को आरोप पत्र भेजकर स्पष्टी करण मांगेगा। इसके बाद कार्मिक विभाग कार्यवाही के लिए मुख्य सचिव को प्रस्ताव भेजने और मुख्य सचिव द्वारा मुख्यमंत्री को जानकारी देकर संबंधित अधिकारी के खिलाफ कार्यवाही करेगे। साथ ही खर्रा ने एडीजी एसओजी के लिए कहा है कि वह 2024 में इस प्रकरण की निष्पक्ष जांच कर दोषी अधिकारियों व कर्मचारियों के खिलाफ चालान पेश करेंगे।

316 पत्रावलिया कहां हैं?

विधानसभा में उदयपुर शहर विधायक ताराचंद जैन ने मुद्दा उठाया कि यूआईटी ने नगर निगम को 12115 भूखण्डों की पत्रावलियां दी हैं, जिसमें 6046 पट्टे जारी किए और 5133 पत्रावलियां हैं। इन दोनों में से 316 पत्रावलियां नहीं हैं। निगम ने 40 संदिग्ध भूखण्डों की जांच के यूआइटी को पत्र भेजने के लिए कहा था पर आज तक यूआईटी को एक भी पत्र नहीं दिया।

40 रुपए फीट में दे दी 12 हजार स्क्वायर फीट जमीन

विधानसभा में उदयपुर शहर विधायक तारांचद जैन ने कहा कि यह करोड़ों का गबन है। रेलवे पटरी के पास में 12000 फीट का एक भूखण्ड 40 रुपये फीट मे दे दिया। जबकि, वहां की डीएलसी रेट 1853 रुपये फीट है। तत्कालीन आयुक्त ने 1 लाख 36 हजार में यह भूखण्ड दे दिया। वहां से रेलवे की डबल लाइन स्वीकृत हो चुकी है। सुप्रीम कोर्ट ने उसे अतिक्रमी माना है। 12 साल से यूआईटी ने वाद दायर कर उसे अतिक्रमी साबित करवाया है। तत्कालीन आयुक्त हिम्मतसिंह बारहठ ने उसे मनमानी कर यह प्लॉट दे दिया। नगरीय विकास और स्वायत्त शासन मंत्री झाबर सिंह खर्रा ने इसकी भी जांच के निर्देश दिए है।

कटारिया ने भी उठाया था मुद्दा

उदयपुर शहर विधायक ताराचंद जैन ने विधानसभा में बताया कि तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया ने भी 15वीं विधानसभा के 7वें सत्र में यह मुद्दा उठाया था, पर तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने जवाब आने के बाद भी सदन के पटल पर इसका जवाब नहीं दिया।