इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 43 वर्ष पूर्व हुई हत्या में आरोपियों को बरी किया

प्रयागराज, 15 मई (हि.स.)। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बस्ती के खेसरहा थानाक्षेत्र में 43 वर्ष पूर्व हुई हत्या के आरोपियों को राहत देते हुए उन्हें बरी कर दिया। कोर्ट ने कहा कि याचियों-अपीलकर्ताओं के खिलाफ अभियोजन पक्ष आरोपों को संदेह से परे साबित करने में नाकाम रहा।

याची नंबर एक जगदीश की मौत हो चुकी है। लिहाजा, उसके खिलाफ मुकदमा पहले ही समाप्त किया जा चुका था। जबकि अन्य याचियों राम अचल और विषधर उर्फ श्रीधर के खिलाफ आरोप तय नहीं किया जा सका। दोनों आरोपी पहले से ही जमानत पर है। लिहाजा, उनके जमानत बांड और जमानतदारों को उन्मोचित किया जाता है। यह आदेश न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा और न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर की खंडपीठ ने जगदीश व अन्य की अपीलों को स्वीकार करते हुए दिया है।

कोर्ट ने कहा कि गवाही से पता चलता है कि घटना स्थल पर आरोपी-अपीलकर्ताओं की उपस्थिति संदिग्ध है। गवाह नंबर दो और तीन ने कहा कि उन्हें चौथे आरोपी ने घटनास्थल पर पहुंचने से रोका था। इससे अभियोजन पक्ष की सत्यता साबित नहीं हो रही है। गवाह दो और तीन मृतक के रिश्तेदार थे और इसलिए जब शिकायत दर्ज कराने वाली युवती राधिका ने कहा कि वह और उसका पति (मृतक) उसकी मायके में रह रहे थे, तो वह बयान भी उतना सच नहीं है। यह विश्वास योग्य नहीं है। कोर्ट ने इन तथ्यों और सबूतों के मद्देनजर अपील को स्वीकार कर लिया।

मामला, 19 और 20 जुलाई 1980 की मध्यरात्रि का है। शिकायत दर्ज कराने वाली युवती राधिका व पति बुचनू तिवारी के साथ घर के बरामदे में सो रहे थे। रात 12 बजे चार लोग देशी पिस्तौल और लाठियों के साथ घटना स्थल पर पहुंचे और फायरिंग कर उसके पति की हत्या कर दी। ट्रायल कोर्ट ने सुनवाई करते हुए आरोपियों को दोषी मानते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। याचियों ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।