AI से बढ़ते खतरे: ChatGPT का फोटो जनरेशन फीचर बन सकता है साइबर फ्रॉड का नया हथियार

AI से बढ़ते खतरे: ChatGPT का फोटो जनरेशन फीचर बन सकता है साइबर फ्रॉड का नया हथियार
AI से बढ़ते खतरे: ChatGPT का फोटो जनरेशन फीचर बन सकता है साइबर फ्रॉड का नया हथियार

आज के डिजिटल युग में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) तेजी से विकास कर रहा है। लेकिन इसके साथ ही इसके दुरुपयोग की आशंका भी उतनी ही तेजी से बढ़ रही है। हाल ही में OpenAI ने ChatGPT में फोटो जनरेशन फीचर लॉन्च किया है, जिससे यूजर्स अब बेहद रियलिस्टिक तस्वीरें बना सकते हैं। यह तकनीक क्रिएटिविटी और प्रोडक्टिविटी के लिहाज से तो उपयोगी है, लेकिन इसके संभावित साइबर सुरक्षा खतरों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

फोटो जनरेशन फीचर और उससे जुड़ी चिंताएं

ChatGPT का यह नया फीचर उपयोगकर्ताओं को कृत्रिम छवियां बनाने की सुविधा देता है। हालांकि, साइबर सिक्योरिटी विशेषज्ञों का कहना है कि यह तकनीक अपराधियों के लिए नकली पहचान पत्र जैसे आधार कार्ड, पासपोर्ट और KYC दस्तावेज बनाने का एक शक्तिशाली साधन बन सकती है। इन दस्तावेजों को आम व्यक्ति के लिए पहचान पाना लगभग असंभव है, जिससे फ्रॉड और धोखाधड़ी के मामलों में इजाफा हो सकता है।

बैंकिंग से लेकर हेल्थकेयर तक खतरा

AI से बने नकली दस्तावेज अब केवल एक विचार नहीं रहे, बल्कि ये एक वास्तविक खतरा बन चुके हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार, बैंकिंग, बीमा, टेलीकॉम, लॉजिस्टिक्स, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं जैसे क्षेत्रों पर इसका सीधा असर पड़ सकता है।
धोखेबाज़ AI टूल्स की मदद से किसी की भी पहचान के नाम पर नकली डॉक्यूमेंट तैयार कर सकते हैं और इसका इस्तेमाल लोन, सिम कार्ड, हेल्थ क्लेम जैसी सेवाओं में फर्जीवाड़ा करने में किया जा सकता है।

मौजूदा सिक्योरिटी उपायों पर सवाल

अब तक इस्तेमाल किए जाने वाले पारंपरिक सुरक्षा उपाय जैसे:

  • वॉटरमार्किंग
  • फेस रिकग्निशन
  • मेटाडेटा चेक (C2PA)

ये सभी AI जनित इमेजेस और डॉक्यूमेंट्स को पहचानने में कमजोर साबित हो रहे हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि संस्थानों को अब पारंपरिक उपायों से आगे जाकर AI आधारित डीपफेक डिटेक्शन सिस्टम में निवेश करना होगा, जो रीयल-टाइम में सिंथेटिक या एडिटेड इमेज को पहचान सके।

AI और डीपफेक से बढ़ते साइबर अपराध

AI का दायरा अब नकली दस्तावेजों से आगे बढ़कर डीपफेक वीडियो और ऑडियो तक पहुंच गया है।
ये इतने असली लगते हैं कि आम व्यक्ति ही नहीं, कंपनियां और संस्थाएं भी इनके झांसे में आ जाती हैं।
सिर्फ 2024 में ही डीपफेक तकनीक से जुड़े फर्जी कंटेंट के कारण दुनिया को 6 अरब डॉलर से ज्यादा का नुकसान हुआ है।
हांगकांग की एक मल्टीनेशनल कंपनी अकेले 22.5 मिलियन डॉलर की धोखाधड़ी का शिकार हुई।

आने वाले समय में और बढ़ेगा खतरा

Pi-Labs के संस्थापक और साइबर सुरक्षा विशेषज्ञ अंकुश तिवारी का कहना है कि यह खतरा अभी शुरुआत भर है।
विशेषज्ञों का अनुमान है कि 2028 तक 40% से ज्यादा साइबर अटैक में डीपफेक और सोशल इंजीनियरिंग तकनीकों का इस्तेमाल किया जाएगा।

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