
आज का डिजिटल युग तेजी से बदल रहा है और इसकी बड़ी वजह है आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI)। चाहे स्क्रिप्ट लिखना हो, फोटो से वीडियो बनाना हो या फिर डेटा का विश्लेषण करना हो—AI अब इंसानी क्षमताओं के बहुत करीब पहुंच चुका है। हाल ही में जापान के ओसाका विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने एक ऐसा AI मॉडल विकसित किया है जो इंसान की जैविक उम्र (Biological Age) का अनुमान लगा सकता है।
इसी कड़ी में अब दो नए AI मॉडल सामने आए हैं जो इंसानी भावनाओं को समझने और उसकी तरह व्यवहार करने में सक्षम माने जा रहे हैं। ये मॉडल हैं OpenAI का GPT-4.5 और Meta का LLaMA-3.1, जिन्होंने एक महत्वपूर्ण ट्यूरिंग टेस्ट पास कर लिया है।
क्या है ट्यूरिंग टेस्ट?
ट्यूरिंग टेस्ट 1950 के दशक में मशहूर गणितज्ञ एलन ट्यूरिंग द्वारा प्रस्तावित एक मापदंड है। इसका मकसद यह पता लगाना है कि कोई मशीन क्या इतनी समझदार हो सकती है कि वह इंसान की तरह बातचीत और भावनात्मक प्रतिक्रिया दे सके।
अब तक यह टेस्ट पास करना किसी भी AI के लिए बड़ी उपलब्धि माना जाता है।
GPT-4.5 के नतीजे बेहद प्रभावशाली
कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी, सैन डिएगो के शोधकर्ताओं कैमरून आर. जोन्स और बेंजामिन के. बर्गन ने अपनी रिसर्च में पाया कि GPT-4.5 ने ट्यूरिंग टेस्ट में लगभग 73 प्रतिशत सटीकता दिखाई।
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इसका मतलब है कि GPT-4.5 की प्रतिक्रियाएं और व्यवहार 73 प्रतिशत तक इंसानों जैसे लगे।
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यह AI मॉडल न केवल संवाद में निपुण था, बल्कि भावनात्मक समझदारी भी प्रदर्शित कर रहा था।
Meta के LLaMA-3.1 का प्रदर्शन भी उल्लेखनीय
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Meta का LLaMA-3.1 मॉडल 56 प्रतिशत सटीकता के साथ इंसानी व्यवहार के करीब रहा।
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वहीं, Eliza और GPT-40 जैसे बेसलाइन मॉडल केवल 23% और 21% तक ही इंसान जैसा व्यवहार कर पाए।
क्या AI इंसान जैसा बन चुका है?
रिसर्चर्स का कहना है कि ट्यूरिंग टेस्ट पास कर लेना यह साबित नहीं करता कि AI पूरी तरह इंसानी सोच और व्यवहार को अपनाने में सक्षम हो गया है।
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इस बार के परीक्षण पहले के ट्यूरिंग टेस्ट से अधिक कठिन और चुनौतीपूर्ण बनाए गए थे।
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AI मॉडल्स को जटिल भावनात्मक, सामाजिक और वैचारिक स्थितियों में रखा गया, जहां GPT-4.5 ने अपनी क्षमता का शानदार प्रदर्शन किया।
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