दिल्ली में AAP का सॉफ्ट हिंदुत्व कार्ड: मुस्लिम वोट बैंक और कांग्रेस के साथ नई जंग

Atishikejriwal

दिल्ली में सत्ता पर काबिज आम आदमी पार्टी (AAP) तीसरी बार सरकार बनाने की कोशिश में है। इस बार पार्टी ने ‘सॉफ्ट हिंदुत्व’ का सहारा लिया है। मंदिरों के पुजारियों और गुरुद्वारों के ग्रंथियों को ₹18,000 प्रति माह सम्मान राशि देने का वादा कर ‘पुजारी-ग्रंथी सम्मान योजना’ का ऐलान किया गया है।

पार्टी इस कदम को बीजेपी पर निशाना साधने के रूप में प्रचारित कर रही है। हालांकि, बीजेपी इसे AAP का ‘चुनावी हिंदू मोड’ बता रही है। दिलचस्प बात यह है कि AAP का यह रुख विपक्षी गठबंधन ‘INDIA’ के सेकुलर सिद्धांतों के विपरीत नजर आता है। इस बार AAP को कांग्रेस के साथ मुस्लिम वोटों के लिए भी कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है।

पिछले चुनावों में AAP को मुस्लिम वोटों का एकतरफा समर्थन

2015 और 2020 के दिल्ली विधानसभा चुनावों में AAP को मुस्लिम वोटरों का जबरदस्त समर्थन मिला था। मुस्लिम-प्रभावित 11 सीटों में से:

  • 2013 में: कांग्रेस के पास 6 सीटें थीं।
  • 2015 में: AAP ने इनमें से 10 सीटों पर जीत हासिल की।
  • 2020 में: AAP ने 9 सीटें अपने नाम कीं।

2020 के चुनाव में:

  • AAP के सभी 5 मुस्लिम प्रत्याशियों ने जीत दर्ज की।
  • मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में वोटिंग प्रतिशत सबसे अधिक था।

इस बार, कांग्रेस और AIMIM की चुनौतियों के चलते AAP का यह समर्थन कमजोर पड़ता दिख रहा है।

कांग्रेस ने मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश की

इस चुनाव में कांग्रेस ने AAP के खिलाफ मुस्लिम वोटरों को साधने के लिए बड़ी रणनीति अपनाई है:

  1. मुस्लिम उम्मीदवारों की संख्या: कांग्रेस ने अब तक 47 कैंडिडेट में 6 मुस्लिम प्रत्याशी उतारे हैं, जबकि AAP ने 70 में से सिर्फ 5 मुस्लिम उम्मीदवार खड़े किए हैं।
  2. AIMIM का प्रभाव: AIMIM ने विवादित चेहरों, जैसे दिल्ली दंगे के आरोपी ताहिर हुसैन, को मैदान में उतारकर AAP के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी हैं।

कांग्रेस का यह प्रयास AAP के मुस्लिम वोट बैंक में सेंधमारी कर सकता है।

AAP में मुस्लिम नेतृत्व का सवाल

AAP के लिए एक प्रमुख चुनौती यह भी है कि पार्टी में कोई स्पष्ट और प्रभावशाली अल्पसंख्यक चेहरा नहीं है।

AAP के मुस्लिम चेहरे:

  1. इमरान हुसैन: बल्लीमारान से विधायक और मंत्री।
  2. अमानतुल्लाह खान: ओखला से विधायक और वक्फ बोर्ड से जुड़े विवादों के चलते चर्चित।
  3. शोएब इकबाल: मटियामहल से विधायक।

इनके अलावा, पार्टी के दो अन्य मुस्लिम विधायकों ने भी 2020 में जीत दर्ज की थी।

अमानतुल्लाह खान का विवादित सफर:

  • सितंबर 2024 में मनी लॉन्ड्रिंग मामले में गिरफ्तार हुए।
  • हाल ही में कोर्ट ने उन्हें रिहाई दी।
  • अमानतुल्लाह खान का नाम अक्सर नकारात्मक कारणों से चर्चा में रहता है।

AAP ने अब तक किसी भी मुस्लिम नेता को पार्टी के अल्पसंख्यक चेहरे के रूप में सामने नहीं रखा है।

मुस्लिम समुदाय में कांग्रेस की पकड़

कभी दिल्ली में कांग्रेस का मुस्लिम वोट बैंक बहुत मजबूत था।

  • शीला दीक्षित सरकार: हारुन यूसुफ और परवेज हाशमी जैसे प्रभावशाली अल्पसंख्यक नेता पार्टी के मजबूत स्तंभ थे।
  • 2013 तक: मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में कांग्रेस का दबदबा कायम रहा।

हालांकि, AAP की एंट्री के बाद यह वोट बैंक AAP की तरफ खिसक गया। इस बार कांग्रेस उसी वोट बैंक को दोबारा हासिल करने की कोशिश में है।

AIMIM: नई चुनौती

असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM ने इस बार दिल्ली के चुनाव में एंट्री लेकर AAP और कांग्रेस दोनों के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी हैं।

  • मुस्तफाबाद सीट: AIMIM ने दिल्ली दंगे के आरोपी ताहिर हुसैन को कैंडिडेट बनाया है।
  • चर्चा है कि एक और आरोपी शाहरुख पठान को टिकट दिया जा सकता है।

AIMIM का उद्देश्य मुस्लिम वोटरों में कट्टरपंथी छवि को भुनाना है। इससे AAP और कांग्रेस को नुकसान हो सकता है।

AAP का सॉफ्ट हिंदुत्व कार्ड: रणनीति या मजबूरी?

AAP ने ‘सॉफ्ट हिंदुत्व’ का दांव खेलते हुए पुजारी और ग्रंथी को ₹18,000 प्रति माह की सम्मान राशि देने का वादा किया है।

  • यह कदम हिंदू वोटरों को आकर्षित करने की कोशिश है।
  • BJP इसे ‘चुनावी हिंदू मोड’ कहकर आलोचना कर रही है।

हालांकि, AAP की यह रणनीति उसके सेकुलर एजेंडे और विपक्षी गठबंधन INDIA के सिद्धांतों के खिलाफ जाती है।