
बिहार एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध राज्य है, लेकिन पिछले कई दशकों से यह एक गंभीर सामाजिक-आर्थिक चुनौती से जूझ रहा है — रोजगार के लिए बड़े पैमाने पर पलायन। यह समस्या केवल राज्य की अर्थव्यवस्था को नहीं प्रभावित करती, बल्कि समाज, परिवार और युवाओं के भविष्य पर भी गहरा असर डालती है।
कौन करता है पलायन और क्यों?
हर वर्ष बिहार के लाखों युवा बेहतर रोजगार की तलाश में दिल्ली, महाराष्ट्र, पंजाब, कर्नाटक जैसे राज्यों की ओर रुख करते हैं।
मुख्य सवाल हैं:
- कौन पलायन करता है?
- वे कहां जाते हैं?
- वे किन परिस्थितियों में रहते और काम करते हैं?
- पलायन को प्रभावित करने वाले सामाजिक और पारिवारिक कारक क्या हैं?
इन सवालों का उत्तर हमें बिहार के पलायन के पैटर्न और कारणों को समझने में मदद करता है।
पलायन की प्रमुख वजहें
- रोजगार के अवसरों की कमी
बिहार में उद्योगों की भारी कमी है।
कृषि भी आजीविका का स्थायी साधन नहीं बन सकी है, क्योंकि यह आधुनिक तकनीक और निवेश से वंचित है। - शिक्षा और कौशल विकास में कमी
गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और तकनीकी प्रशिक्षण के लिए छात्रों को राज्य के बाहर जाना पड़ता है। - बुनियादी ढांचे की कमी
सड़कों, बिजली और जल आपूर्ति जैसी सुविधाएं अब तक सीमित थीं। हालांकि, हाल के वर्षों में इसमें सुधार हुआ है, लेकिन यह उद्योगों के विकास के लिए पर्याप्त नहीं है।
सरकारी आंकड़े क्या कहते हैं?
- 2.9 करोड़ लोग बिहार से रोजगार के लिए दूसरे राज्यों में पलायन कर चुके हैं।
- यह संख्या राज्य की कुल आबादी का लगभग 20 प्रतिशत है।
- यह आंकड़ा ई-श्रम पोर्टल पर दर्ज लोगों का है, जबकि ऐसे करोड़ों लोग हैं जिन्होंने इस पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन ही नहीं कराया।
- इसलिए वास्तविक आंकड़ा कहीं अधिक होने की संभावना है।
पारिवारिक और सामाजिक जीवन पर असर
पलायन का प्रभाव सिर्फ आर्थिक नहीं, बल्कि सामाजिक और पारिवारिक ताने-बाने पर भी पड़ता है।
- लोग अपने परिवार से दूर रहने को मजबूर होते हैं।
- ट्रेनों में भीड़ के साथ यात्रा करना, छुट्टियों में घर लौटने की कठिनाई, और भावनात्मक दूरी आम समस्याएं हैं।
- गांवों में युवा पुरुषों की संख्या घटने से सामाजिक गतिविधियों में भी गिरावट आती है।
- बच्चों की शिक्षा और देखभाल की जिम्मेदारी अकेले महिलाओं पर आ जाती है, जिससे मानसिक और आर्थिक तनाव बढ़ता है।
समाधान क्या है?
पलायन की समस्या का समाधान बहुआयामी और दीर्घकालिक है। इसके लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं:
- स्थानीय स्तर पर रोजगार सृजन
- सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों (MSME) को बढ़ावा दिया जाए
- स्टार्टअप्स और स्थानीय उद्यमों को सब्सिडी व सहयोग मिले
- शिक्षा और कौशल विकास
- तकनीकी संस्थानों की स्थापना
- व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्रों को मजबूत किया जाए
- बुनियादी ढांचे का विकास
- बेहतर सड़कों, बिजली और औद्योगिक क्षेत्र का निर्माण
- निवेश को आकर्षित करने के लिए नीतिगत सुधार
- सरकारी और निजी क्षेत्र का सहयोग
- PPP मॉडल के तहत रोजगार सृजन
- सरकारी योजनाओं का प्रभावी क्रियान्वयन
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