
अमेरिका और ईरान के बीच एक नए परमाणु समझौते को लेकर आज ओमान में सीधी वार्ता शुरू हो रही है। यह बातचीत मध्य पूर्व में शांति स्थापना की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल मानी जा रही है, खासकर ऐसे समय में जब यह क्षेत्र अस्थिरता और संघर्ष का सामना कर रहा है। इस वार्ता को लेकर वैश्विक स्तर पर काफी नजरें टिकी हुई हैं क्योंकि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चेतावनी दी है कि यदि समझौता नहीं हुआ तो वह ईरान के खिलाफ सैन्य कार्रवाई कर सकते हैं।
करीब एक दशक के लंबे अंतराल के बाद दोनों देशों के बीच यह पहली सीधी वार्ता है। ट्रंप ने ईरान को स्पष्ट रूप से दो महीने का समय दिया है कि वह प्रस्तावित समझौते को स्वीकार करे, जिसके अंतर्गत ईरान को अपने परमाणु कार्यक्रमों को पूरी तरह से बंद करना होगा।
ट्रंप का कड़ा रुख, परमाणु ठिकानों को बना सकते हैं निशाना
राष्ट्रपति ट्रंप ने साफ कर दिया है कि अगर यह वार्ता विफल होती है तो अमेरिका ईरान के परमाणु कार्यक्रमों को निशाना बनाकर सैन्य कार्रवाई करेगा। हालांकि, अभी किसी तत्काल समझौते की उम्मीद नहीं जताई जा रही है, फिर भी यह वार्ता दोनों देशों के लिए रणनीतिक रूप से अहम मानी जा रही है।
ईरान की ओर से लगातार यह संकेत दिए जा रहे हैं कि वह यूरेनियम संवर्धन जारी रख सकता है, जो कि परमाणु हथियार निर्माण की दिशा में एक अहम कदम है।
2015 के समझौते की यादें और ओमान की भूमिका
इससे पहले 2015 में बराक ओबामा के राष्ट्रपति काल में अमेरिका और विश्व शक्तियों के साथ ईरान ने एक ऐतिहासिक परमाणु समझौता किया था। उस समझौते के लिए भी ओमान एक प्रमुख माध्यम बना था, जहां गुप्त वार्ताएं हुई थीं। वाशिंगटन स्थित रिस्क एनालिसिस फर्म ‘गल्फ स्टेट एनालिटिक्स’ के प्रमुख जियोर्जियो कैफिएरो के अनुसार, ओमान को इस तरह की मध्यस्थता में वर्षों का अनुभव है, जो उसे इस भूमिका के लिए उपयुक्त बनाता है।
व्हाइट हाउस का बयान और विशेषज्ञों की राय
व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव कैरोलिन लेविट ने स्पष्ट किया कि यह वार्ता सीधे तौर पर ईरानी प्रतिनिधियों के साथ की जा रही है और इसका एकमात्र उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि ईरान कभी भी परमाणु हथियार न बना पाए।
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि बातचीत असफल होती है और अमेरिका ने सैन्य विकल्प चुना, तो इससे पूरे मध्य पूर्व क्षेत्र में तनाव और युद्ध की स्थिति पैदा हो सकती है। ट्रंप की धमकी को देखते हुए यह वार्ता केवल कूटनीतिक पहल नहीं बल्कि एक गंभीर सुरक्षा चुनौती भी बन गई है।