
उत्तर प्रदेश में संस्कृत शिक्षा को बढ़ावा देने और रोजगारपरक बनाने के लिए योगी आदित्यनाथ सरकार ने कई महत्वपूर्ण फैसले लिए हैं। इन फैसलों के तहत प्रदेश में 73 नए संस्कृत महाविद्यालयों को मान्यता दी गई है। इसके साथ ही उत्तर प्रदेश माध्यमिक संस्कृत शिक्षा परिषद ने चार नए डिप्लोमा पाठ्यक्रमों की शुरुआत भी की है, जिनका उद्देश्य युवाओं को संस्कृत के माध्यम से रोजगार के अवसरों से जोड़ना है।
संस्कृत शिक्षा का हो रहा विस्तार
प्रदेश सरकार द्वारा किए जा रहे इन प्रयासों से संस्कृत भाषा के प्रति रुचि रखने वाले छात्रों को व्यापक लाभ मिलेगा। इन नए महाविद्यालयों की स्थापना से खासकर ग्रामीण क्षेत्रों के विद्यार्थियों को संस्कृत में उच्च शिक्षा प्राप्त करने का अवसर मिलेगा। इस पहल से न केवल परंपरागत ज्ञान को संरक्षित किया जा रहा है, बल्कि आधुनिक समाज में इसकी प्रासंगिकता भी स्थापित की जा रही है।
डिप्लोमा कोर्स से छात्रों को मिलेगा रोजगार का रास्ता
चार नए शुरू किए गए डिप्लोमा पाठ्यक्रम संस्कृत को केवल एक शास्त्रीय भाषा के रूप में देखने के बजाय इसे आधुनिक करियर विकल्पों से जोड़ने का प्रयास हैं। वर्तमान में प्रदेश के 184 संस्थानों में इन डिप्लोमा कोर्सों के तहत प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इससे छात्रों को शिक्षा, अनुवाद, लेखन, मीडिया, योग और आयुर्वेद जैसे क्षेत्रों में रोजगार के नए अवसर मिल सकते हैं।
संस्कृत: प्राचीन ज्ञान से आधुनिक अवसरों की ओर
संस्कृत को केवल प्राचीन ग्रंथों की भाषा मानना एक सीमित सोच है। आज यह भाषा योग, आयुर्वेद, ज्योतिष और दर्शन जैसे क्षेत्रों में गहराई से जुड़ी है। साथ ही, संस्कृत साहित्य, शोध और शिक्षण में भी व्यापक संभावनाएं हैं। योगी सरकार द्वारा उठाए गए कदमों से यह साबित होता है कि संस्कृत अब केवल परंपरा नहीं, बल्कि एक प्रासंगिक और रोजगारोन्मुखी विकल्प बनती जा रही है।
रोजगार की संभावनाएं बढ़ीं: शिक्षा परिषद का बयान
माध्यमिक संस्कृत शिक्षा परिषद के सचिव शिव लाल ने बताया कि योगी सरकार के इन प्रयासों के परिणामस्वरूप प्रदेश में संस्कृत भाषा के क्षेत्र में रोजगार की संभावनाएं तेजी से बढ़ी हैं। उन्होंने कहा कि इन योजनाओं से छात्रों में उत्साह देखा जा रहा है और आने वाले समय में बड़ी संख्या में युवाओं को इसका प्रत्यक्ष लाभ मिलेगा।