
जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने वक्फ कानून को लेकर सरकार पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने कहा कि यह कानून मुसलमानों के अधिकार छीनने का माध्यम बन रहा है। मदनी का कहना है कि वक्फ मुसलमानों के धार्मिक मामलों से जुड़ा विषय है, इसलिए मुस्लिम समाज ही इसे संभाल सकता है। उन्होंने वक्फ कमेटी में गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल किए जाने पर आपत्ति जताई और इसे अनुचित बताया।
मदनी ने विपक्ष के उन नेताओं को धन्यवाद दिया जो इस कानून का विरोध कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि आज नहीं तो कल मुसलमानों को उनका अधिकार जरूर मिलेगा। इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि सरकार को वक्फ मंत्रालय किसी मुस्लिम नेता को देना चाहिए था।
राष्ट्रपति ने दी वक्फ संशोधन विधेयक को मंजूरी
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2025 को मंजूरी दे दी है। यह विधेयक संसद के दोनों सदनों में लंबी बहस के बाद पारित हुआ था। इस कानून के खिलाफ कई याचिकाएं उच्चतम न्यायालय में दायर की गई हैं, जिनमें केरल के सुन्नी मुस्लिम संगठन ‘समस्त केरल जमीयत-उल उलेमा’ की याचिका भी शामिल है।
जमीयत ने दी सुप्रीम कोर्ट में चुनौती
जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने इस संशोधित कानून को भारत के संविधान पर सीधा हमला बताते हुए सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। संस्था का कहना है कि यह अधिनियम न केवल मुसलमानों की धार्मिक स्वतंत्रता को बाधित करता है, बल्कि संविधान द्वारा दिए गए समान अधिकारों का भी उल्लंघन करता है।
एक प्रेस विज्ञप्ति में जमीयत ने कहा कि यह कानून मुसलमानों की धार्मिक स्वतंत्रता को खत्म करने की एक खतरनाक साजिश है। संगठन की राज्य इकाइयां भी इस कानून के खिलाफ अपने-अपने राज्यों के उच्च न्यायालयों में याचिकाएं दायर कर रही हैं।
मदनी की अंतरिम याचिका
मौलाना अरशद मदनी ने न केवल इस कानून के प्रावधानों को चुनौती दी है, बल्कि इसे लागू होने से रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट में अंतरिम याचिका भी दाखिल की है। वहीं, ‘समस्त केरल जमीयत-उल उलेमा’ ने अपनी याचिका में कहा है कि यह संशोधन वक्फ की धार्मिक प्रकृति को कमजोर करेगा और वक्फ बोर्डों के प्रशासन में लोकतांत्रिक प्रक्रिया को भी नुकसान पहुंचाएगा।
धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकारों पर असर
याचिका में तर्क दिया गया है कि यह कानून धर्म से जुड़े मामलों का प्रबंधन करने के अधिकार में सीधा हस्तक्षेप करता है, जिसे संविधान के अनुच्छेद 26 के तहत संरक्षण प्राप्त है।
राजनीतिक और सामाजिक नेताओं की आपत्तियां
कांग्रेस सांसद मोहम्मद जावेद, एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी और आम आदमी पार्टी के विधायक अमानतुल्लाह खान ने भी इस कानून की वैधता को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दाखिल की हैं। इसके अलावा, ‘एसोसिएशन फॉर द प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स’ नामक गैर-सरकारी संगठन ने भी इस विधेयक के खिलाफ कानूनी लड़ाई शुरू की है।