दिल्ली हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: “किराएदार यह तय नहीं कर सकता कि मकान मालिक अपनी संपत्ति का कैसे करें उपयोग”

दिल्ली हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: "किराएदार यह तय नहीं कर सकता कि मकान मालिक अपनी संपत्ति का कैसे करें उपयोग"
दिल्ली हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: “किराएदार यह तय नहीं कर सकता कि मकान मालिक अपनी संपत्ति का कैसे करें उपयोग”

दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए मकान मालिकों के अधिकारों की पुष्टि की है। इस आदेश में अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा कि किराए पर ली गई संपत्ति को खाली कराने के अधिकार से मकान मालिकों को वंचित नहीं किया जा सकता, और वे अपनी संपत्ति का उपयोग अपनी व्यक्तिगत या व्यावसायिक जरूरतों के अनुसार करने के लिए पूरी तरह स्वतंत्र हैं।

मकान मालिकों को नहीं रोका जा सकता ‘फायदेमंद उपयोग’ से – हाईकोर्ट

इस केस में न्यायमूर्ति जसमीत सिंह की बेंच ने यह दोहराया कि किसी किराएदार को यह अधिकार नहीं है कि वह मकान मालिक को निर्देश दे कि वह अपनी संपत्ति का कैसे उपयोग करे। अदालत ने यह भी कहा कि मालिक को अपनी ही संपत्ति का लाभदायक तरीके से उपयोग करने से रोका जाना न्याय और तर्क के विरुद्ध है।

न्यायमूर्ति सिंह ने कहा:

“मकान मालिक को यह अधिकार है कि वह अपनी संपत्ति का उपयोग जैसे चाहे करे—चाहे वह खुद के लिए हो, अपने व्यवसाय के लिए हो या अपने परिवार के किसी सदस्य के लिए। अदालत इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकती।”

श्यामा प्रसाद मुखर्जी मार्ग पर हुआ था विवाद

यह मामला श्यामा प्रसाद मुखर्जी मार्ग की एक व्यावसायिक संपत्ति से जुड़ा हुआ था, जहां किराएदार ने हाईकोर्ट में निचली अदालत के आदेश को चुनौती दी थी। उस आदेश में किराएदार को संपत्ति खाली करने के लिए कहा गया था।

मकान मालिक ने अदालत को बताया:

  • वे और उनका बेटा संपत्ति के संयुक्त मालिक हैं।
  • वे पहली मंजिल पर एक होटल संचालित करते हैं।
  • बेटा विदेश से पढ़ाई कर लौट चुका है और अब स्वतंत्र व्यवसाय शुरू करना चाहता है।
  • इस कारण से उन्हें वह हिस्सा चाहिए, जो किराए पर है।

किराएदार की आपत्तियां और हाईकोर्ट की प्रतिक्रिया

किराएदार ने याचिका में यह तर्क दिया कि:

  • मकान मालिकों ने 14 अन्य किराएदारों और उनके कब्जे वाले हिस्सों का स्पष्ट विवरण नहीं दिया।
  • बेदखली की मंशा किराया बढ़ाने या प्रॉपर्टी बेचने के उद्देश्य से हो सकती है।

हालांकि, हाईकोर्ट ने यह सभी आपत्तियां अस्वीकार कर दीं और कहा कि:

“रिकॉर्ड में ऐसा कोई साक्ष्य नहीं है जो यह दर्शाता हो कि मकान मालिक की मंशा दुर्भावनापूर्ण या केवल लाभ के लिए थी। यह पूरी तरह व्यक्तिगत आवश्यकता के अंतर्गत आता है।”

मकान मालिक के बेटे का भविष्य जुड़ा है इस निर्णय से

इस मामले में मकान मालिक ने एक अहम पहलू भी उजागर किया कि उनका बेटा, जो विदेश से पढ़कर लौटा है, अपना स्टार्टअप या व्यवसाय शुरू करना चाहता है। अदालत ने माना कि यह एक वास्तविक आवश्यकता है और इससे मकान मालिक के अधिकार की पुष्टि होती है।